फिर गोलियां चली
फिर लोग मरे,
फिर सहम गयी ज़िन्दगी
फिर लोग डरे.
फिर टूट रही डोर है
हर तरफ बस चींख का शोर है
तू जिसकी रक्षा कर रहां
क्या इतना वो कमजोर है
फिर दी दुहाई धर्म की
न लाज रखी शर्म की
फिर हमने उसपे छोड़ दिया
देगा सजा तेरे कर्म की.
फिर विलख रहां है ये मन
घिन हो रही क्यों है ये तन
फिर आज तेरे नाम पर
ये बन गयी धरा है रण
फिर सोच तू क्यों कर रहां
क्यों मारता क्यों मर रहां
फिर पूछेगा सवाल कोई
क्या कहेगा है ख्याल कोई !
– शिवम कुमार शर्मा
सुन्दर रचना
badhiya shivam……………
शिव जी बहुत अच्छा लिखा है अपने. धर्म के नाम. पर पॉलिटिक्स ही चल रही है .इंसानियत नाम की कोई चीज़ रह ही नहीं गयी है धर्म ऊंचाइयों पर ले जाने केलिए होता है पर कुछ लोग धर्म को गिराने. का काम कर रहें है
शिवम् अच्छी रचना, यूँही लिखते रहें!
अच्छी रचना………………………………