बचपन की बातें
वो तारों भरी रातें
गर्मी के मौसम में
बदली का छाना
और
अचानक ही बहना
ठंडी हवा. का
बिस्तर पे लेटे
नज़ारा करते थे हम
छुपता था चंदा
कभी बदली के डर से
कभी बदली की
बाँहों में घिरना घिरना
मज़ा देता था कितना
वो छुपना छुपाना
कभी उनका मिलाना
कभी दूर. जाना
कितनी प्यारी थी रातें
और
समां भी सुहाना
है याद अब भी
वो बचपन का आलम
हर बात पर
जब दिल झूमता था
न जाने. सितारों.
में क्या ढूंढता था
छोटी छोटी बातों पे
मचल जाता था वो
चाहने पे लाख
न काबू. में आता था वोः
था चंचल बहुत वोः
बचपन सुहाना
याद आती हैं अक्सर
वो तारों भरी रातें
प्यारी प्यारी सी
वो बचपन की बातें
मधुर रचना किरण जी……………
बहुत 2धन्यवाद शिशिर जी
मीठी यादें………….अति सुन्दर……….
धन्यवाद विजय जी
बहुत बढ़िया किरण जी मुझे ऐसी रचनाएं बेहद पसंद है………बेहतरीन
धन्यवाद मणि जी सराहना के लिए आभारी हूँ
मीठी मीठी रचना…. हा हा हा…..बहुत ही खूबसूरत…..
सराहना के लिए बहुत २ धन्यवाद बाबू जी
किरण गुलाटी जी बहुत ही बढ़िया रचना, साधुवाद आपको!
सुरेंदर जी सराहना के लिए बहुत २ धन्यवाद
बचपन के दिन भी क्या दिन थे …………………………… बहुत ही बढ़िया किरण जी !!
धन्यवाद सर्वजीत सिंह जी आपको कविता पसंद आयी इस के लिए शुक्रिया