आओ मिलकर नया समाज बनाए,
नफरत की लौ बुझाकर,
प्यार का दीप जलाए,
हर धर्म से पहले इंसानियत को,
अपनी पहचान बनाए,
किसी रोते हुए को हँसा,
भूखे की भूख मिटा,
नंगे तन को कपडे से ढक जाये,
मंदिर, मस्जिद, गुरुदुवारे, चर्च,
बहुत बना लिए,
कही अस्प्ताल, स्कूल,
बेघरों के लिए सराये बनवाए,
अपनी आय से दसवा हिस्सा,
जरूर निकाले, आपकी बचत,
किसी जरूरत मंद की ख़ुशी बन जाये,
उम्मीद है मुझे, देंगे आप साथ मेरा,
बदलेंगे इस देश के हालातो को,
समझेंगे मेरे जज्बातो को,
पर डर भी है मुझे कही ना कही,
मेरे लिखे लफ्ज़,
बेहतरीन, लाजवाब, ख़ूबसूरत,
“मनी” की रचना बन ना रह जाये |
सुन्दर समाज ख़ूबसूरत रचना मनी जी
thanks abhishek ji…………..
बहुत खूब……………………..लगे रहिये………….
तहे दिल से आभार विजय जी आपका
हा हा हा…..मनीजी…नहीं बनते सिर्फ लफ्ज़…आप चिंता मत करो….बहुत ही खूबसूरत…..
सी एम शर्मा जी जब तक आप साथ है चिंता पास भी नहीं आ सकती है……शुक्रिया आपका इस होसलाअफ़ज़ाई के लिए
मनी जी आपकी इस सोच को सलाम.. बहुत अच्छे.
बहुत बहुत शुक्रिया आपका सोनित जी |
अच्छी कविता मनिंदर जी, बहुत खूब…..!
तहे दिल से शुक्रिया सुरेन्द्र जी आपका |
हमेशां अपनी रचना में समाज के हालात को दर्शाते हो ………………………… बहुत बढ़िया मनी !!
जी सर्वजीत जी शायद को इन् बातों को समझे और इन्हे अपनी जिंदगी में अपनाए….तहे दिल से शुक्रिया आपका बहुत बहुत |
मणि जी बहुत सूंदर विचार हैं सेवा से बड्ड कर और क्या हो सकता है
जी किरण जी बस एक छोटी सी कोशिश है मेरी……आपको मेरी रचना पसंद आई बहुत बहुत आभार आपका
मनी इसी सोच को निरन्तर अमल में लाने की आवश्यकता है.
जी शिशिर जी अपनी तरफ से पूरी कोशिश है मेरी, बस आप जैसे गुणीवान लोग का साथ चाहिए | जितना भी उस परमात्मा की रजा से, थोड़ा बहुत अच्छा कर रहा हु |….तहे दिल शुक्रिया शिशिर जी आपका