बढ़ चला है ताप अब,
बर्फ को पिघलने दो !
रोको विष, न रुको, कदम को बढ़ा चलो,
आक्रोश में शिखर को थोड़ा पिघलने दो,
बन चला है जंगल, अब न रहा जन्नत,
काँटों के झुर्मुठों को थोड़ा तो सुलगने दो,
रहो सजग, मन में न विष कोई घुल पाये,
थाम लो फूलों को, न काँटों संग पलने दो ।
बढ़ चला है ताप अब,
बर्फ को पिघलने दो !
सह पर पाक के, न पाक दामन अब रहा,
आस्तीन के सांप को आस्तीन से निकलने दो,
षडयंत्र की जमात में कौटिल्य को याद कर,
विष को विष से काट, जीवन को संभलने दो,
न रहेगा राज्य तो राजनीति कर सकेगी क्या,
जन-मन से न खेलो, उनके मन को खिलने दो ।
बढ़ चला है ताप अब,
बर्फ को पिघलने दो !
धर्म के ठेकेदार, न दिशा गलत दिखलायें,
नापाक होते इरादों को जन में न फैलने दो,
हटा दो आडम्बर लिबास, हो सीमा में आजादी,
देशद्रोह की राजनीति की हवा निकलने दो,
धन का खेल, खेल रहे सब, धर्म के दुराचारी,
स्वर्ण सिंघासन से हटा, पिंजर में धकेल दो ।
बढ़ चला है ताप अब,
बर्फ को पिघलने दो !
विजय कुमार सिंह
vijaykumarsinghblog.wordpress.com
Note : ब्लॉग पर तस्वीर के साथ देखें.
बेहतरीन विजय जी
बहुत बहुत धन्यवाद अभिषेक JI.
bahut badiya sir,,,,,ji vijay ji humae sajag hone ki jaroorat hai nahi to matlab parast log apna faida uthate rahenge
बहुत बहुत धन्यवाद mani JI.
लाजवाब…..बिलकुल सही कहा आपने…..
सराहना के लिए ह्रदय से आभार.
विजय जी बहुत सूंदर अभिव्यक्ति है .आज दुनिआ विनाश की ओर जा रही है ,इंसानियत का दमन हो रहा है ,शायद दुनिआ बहुत खुदग़रज़ हो गयी है . भगवन से प्रार्थना कर सकते हैं की सब को सद्बुद्धि दें
सराहना के लिए ह्रदय से आभार.
सत्य वचन, देश से सभी धार्मिक उन्मादी संघ्त्थानो पर लगाम लगाने की आवश्यकता है पर दुर्भाग्य अधिकतर किसी न किसी राजनैतिक पार्टी के अनुवांशिक है।
सराहना के लिए ह्रदय से आभार.
रोको ना अपनी कलम
अब तेज धार सी चलने दो
बढ़ चला है ताप अब,
बर्फ को पिघलने दो ! …………………………………..
बेहतरीन ……………………………………… बहुत ही बढ़िया विजय जी !!
इतनी सुन्दर सराहना के लिए आपका ह्रदय से आभार सर.
Bahut badiya likha hai aapne, Vijayji.
सराहना के लिए ह्रदय से आभार.
सारगर्भित रचना ..साधुवाद ..
सराहना के लिए ह्रदय से आभार.