रिश्तों का अर्थ बदल रहा
प्रीत नफरत में उबल रहा
वाचाल बना हर कोई यहाँ
अपनों को बस कुचल रहा
कभी प्रीत की भाषा थी मौन
आज बिन बोले समझे कौन
हर रिश्ता लगता जीर्ण शीर्ण
चेतन नवांकुर करेगा कौन
रिश्तों की ये अजीब उलझन
मर्यादा खंडित होती हर क्षण
स्वछन्द रहने की जिजीविषा में
रिश्ते शर्तों के क्षणिक गठबंधन
आज जिसके लिए रखा उपवास
कल उसी दिल में दूजे का वास
वसन बदलते है बदन के जैसे
रोज बदलते यहाँ खासम-खास
आगे निकलने की लगी होड़
कर्तव्यों ने भी लिया मुँह मोड़
निकल जाते है लोग यहाँ
घरों में पड़े लाशों को छोड़
निज पडोसी दीखते अंजाने से
कभी साथ आते थे मयखाने से
अब तो अपने ही शक करते है
यारों के दर भी आने जाने से
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सुरेन्द्र नाथ सिंह “कुशक्षत्रप”
Nice ,aachhi kavita hai
किरण गुलाटी जी, रचना को पढ़ने और अपनी भावना से अवगत कराने हेतु मै करबद्ध आभारी हूँ…….!
सत्य वचन….आज अमूमन ऐसा ही हो रहा….रिश्ते तो जैसे ढो रहा हो….प्यार…मोहब्बत सब बीते दिनों की बातें लगने सी लगी हैं….बहुत ही यथारतवादि रचना….खूबसूरत अलफ़ाज़…लाजवाब अंदाज़…..
बब्बू जी, आपकी निरंतर अर्थपूर्ण प्रतिक्रिया मुझ जैसे नवोदित रचनाकारों की शक्ति है……..! प्यार बनाये रखें!
रचना के भावों को बखूबी समझने और अपने बहुमूल्य विचार साझा करने हेतु मनिंदर जी मै आपका अति आभारी हूँ!
बहुत ही खूबसूरत रचना सुरेन्द्र जी….आज के रिश्तों में जो दरारे पड़ चुकी है उनका आपने बखूबी चित्रण किया है | प्यार तो सिर्फ दिखावा बन के रह गया है सभी फ़ायदा देख रिश्तों की बुनियदा रखते है………………
रचना के भावों को बखूबी समझने और अपने बहुमूल्य विचार साझा करने हेतु मनिंदर जी मै आपका अति आभारी हूँ!
बहुत ही सत्य लिखा है आपने. बधाई……………….बधाई……………..
विजय जी बधाई सिर आँखों पर, धन्यवाद सर जी
लाजवाब रचना सुरेन्द्र जी…बधाई……………
अभिषेक जी निरंतर रचना अवलोकन हेतु आभारी हूँ
सुरेन्द्र बहुत ही उत्कृष्ट श्रेणी की रचना लिखी है आपने. जिस सत्य से हम सभी आज दो चार हो रहें है उसे आपके बहुत ही खूबसूरती से शब्दों में पिरो दिया है.
शिशिर जी धन्यवाद आशीर्वाद देने के लिए…..!
सच में प्यार मोहब्बत हवा हो गया है और सब रिश्तों के अर्थ बदल चुके हैं ————————- लाजवाब ………………………… सुरेन्द्र जी !!
सर्वजीत सिंह जी प्रतिक्रिया के लिए कोटि कोटि आभार!