कलम का सिपाही हूं।
कलम ही चलाता हूं।
जोड़-जोड़ शब्दों को।
कविता ही बनाता हूं।
मन को तसल्ली मिलती है।
जब कविता सुनाता हूं।
नुक्स निकालने के लिए।
कवियों को उकसाता हूं।
नहीं ऐसी आदत है न।
कविता को चुराता हूं।
मन में ख्याल आते ही।
कलम को चलाता हूं।
कलम का सिपाही हूं।
कलम ही चलाता हूं।
जोड़-जोड़ शब्दो को।
कविता ही बनाता हूं।
Hahahaha….bahut badhiya uksaate ho…. Kalam bahut khoobsoorat chalti hai ji…..
कलम के सिपाही तुझे
सलाम
अत्यंत ही भावपूर्ण रचना!
वाह वेद जी…..कमाल कर दिया आपने
कलम चलकर ही ज्ञान अर्जित हो सकता है, चुरा कर नहीं. बहुत खूब……..
आप सभी को तहें दिल से शुक्रिया,,,,आपलोगों के कारण ही मैं जो भी हूं वो हूँ।