रेगिस्तान में फूलों की
तमन्ना न करो
गिरती दीवारों. के तले
आशियाँ न करो
वीरान वादियों में
बहारों की तमन्ना न करो
सहरअं में बहें. झरने ,
ऐसी फ़िज़ूल बातों की चाहत
तुन हरगिज़. न करो
दिए तूफानों में जला करते नहीं
तेज़ आंधियों मे क्या वज़ूद उनका
उम्मीद उनके जलने की
तुम हगीज नकरो
वास्तविकता के नज़दीक बने रहने का सुझाव देती सुंदर रचना
बहुत २ धन्यवाद शिशिर जी
ख़ूबसूरत रचना ………………………….. किरण जी !!
मेरी कोशिश आपको पसंद आयी इसके लिए बहुत २ धन्यवाद सर्वजीत जी
Yatharthwaadi khoobsoorat rachna……
धन्यवाद शर्मा जी
बहुत ख़ूब. बधाई……………….
विजय जी सराहना के लिए. बहु २ दनयवद