आँखों में तुम्हारे तूफ़ान सा क्यूँ है ।
प्यार आज इतना अंजान सा क्यूँ है ।
लगता है नजरें किसी की लग गईं,
बुझा-बुझा आज अरमान सा क्यूँ है ।
जमींदोज हो गईं क्या वफ़ा की राहें,
आज प्यार पर इल्जाम सा क्यूँ है ।
बिना प्यार के तो जिंदगी कुछ नहीं,
दिख रहा सामने श्मशान सा क्यूँ है ।
विजय कुमार सिंह
vijaykumarsinghblog.wordpress.com
wah vijay ki kamal………………..
बहुत बहुत धन्यवाद mani JI.
बहुत सुन्दर रचना विजय जी !
सराहना के लिए ह्रदय से आभार.
अति सुन्दर विजय जी
बहुत बहुत धन्यवाद अभिषेक JI.
अति उत्तम……वाह…क्या बात है….
सराहना के लिए ह्रदय से आभार.
दिख रहा आगे श्मशान क्यों है
वाह विजय जी, क्या कहने………….!
सराहना के लिए ह्रदय से आभार सुरेन्द्र ji.
Lovely write Vijay………..
सराहना के लिए ह्रदय से आभार sir.
विजय जी, इस कविता को बहुत गेहराई से आपने लिखा है
सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद Rinki ji.
वाह क्या बात है …………………………….. बहुत ही बढ़िया विजय जी !!
सराहना के लिए ह्रदय से आभार sir.