चहुँ ओर रूदन है मचा हुआ , मानव तकदीर को रोता है |
दुःख की पीड़ा से हो अधीर , अँसुओं से नयन भिगोता है || 1 ||
बिन खोजे भी अगनित, ऐसे मानव जग में ऐसे मिल जाते हैं |
जीवन भर सतपथ पर चल कर भी, रोते रोते ही जाते हैं || 2 ||
दुष्कर्मी भी दुनियाँ में, हर सुख का भोग उठाते हैं |
अंतिम यात्रा में जाने वाले, जमकर अश्रु बहाते हैं || 3 ||
दुनियाँ में ऐसे भी, बहुत अबोध मिल जाते हैं |
बचपन में ही मातु-पिता को खोकर, दर-दर की ठोकर खाते हैं || 4 ||
ऐसे भी बचपन होते हैं , जो पिता को तस्वीर में पाते हैं |
जन्म से पूर्व ही खोकर साया, जीवन पथ पर पाँव बढाते हैं || 5 ||
जग में किसने है क्या खोया है, कौन इसे बतला सकता |
किसके मन में है क्या पीड़ा, है कौन इसे समझा सकता || 6 ||
किसकी लाठी टूटी बुढापे की, किसके सर से है उठा साया |
असमय किसने खोये अपने, गणना क्या कोई कर पाया || 7 ||
कोई सब कुछ पाकर भी, उपभोग नहीं कर पाता है |
कोई बिना कुछ पाए ही , जीवन का आनंद उठाता है || 8 ||
ऐसे मानव भी हैं जग में , जो पाते हुए भी पीड़ा घोर |
तनिक न होते हैं अधीर , मन को नहीं करते कमजोर || 9 ||
रामकृष्ण का कहना था, कष्ट शरीर को पाने दो |
ऐ मन तुम मस्ती में मगन रहो, आनन्द ह्रदय को पाने दो || 10 ||
इस सबके पीछे छिपे कारण को, मानव नहीं समझ पाता |
ईश्वर को दोषी ठहरा कर , किस्मत को धुन-धुन पछताता || 11 ||
यह नियम जगत का है कैसा , मानव इसे समझे कैसे |
अबूझ नहीं पहेली यह, यदि समझे मानव यह है जैसे || 12 ||
सुख दुःख: के पीछे, ईश्वर का हाथ नहीं कोई होता |
निज कर्म का मानव भागी है, कर्मों की गठरी है ढोता || 13 ||
दृष्टान्त बहुत हैं कथाओं में, कर्मों का नियम हैं बतलाते |
मानव न कभी कर्मों से मुक्त, रहस्य कर्म का बतलाते || 14 ||
ईश्वर न है सुख का दाता, न ही वह दुःख को देता है |
यह तो कर्मों का तराजू है, जो हल्का भारी होता है ||| 15 ||
सत्कर्म भारी होने पर, भोग सुखो का होता है |
दुष्कर्मों का होते ही हिसाब, मानव तकदीर को रोता है || 16 ||
सुख भी कर्मों से आता है, दुःख के भी अपने कारण हैं |
कर्मों से पृथक है कुछ भी नहीं, सुख-दुःख कर्मो के कारण हैं || 17 ||
है कथा पूंछा धृतराष्ट्र ने, मैं क्यों जग में जन्मांध हुआ |
क्या कर्म किया था मैंने जो , मेरे पुत्रों का नाश हुआ || 18 ||
किन कर्मों की गठरी ढोता हूँ , मैं पुत्रहीन अँधा लाचार |
मैंने ऐसे क्या कर्म किए , जो जीवन मेरा हुआ बेकार || 19 ||
कहते हैं उसे मिली दृष्टि, वह पूर्व जन्मों में झाँक सका |
अपने ही कर्मों के फल को , स्वयं ही वह आँक सका || 20 ||
पूर्व जन्म में उसने, इक पक्षी के सौ पुत्रों को मारा था |
वृक्ष को अग्नि समर्पित कर, नेत्र ज्योति को जारा था || 21 ||
पूर्व कर्म का फल , उसने वर्तमान में पाया था |
ईश्वर का इसमें कुछ भी नहीं, जो बोया था, वह पाया था || 22 ||
महाराज दशरथ पिता राम के, कर्म फल से वे भी बच न सके |
अंधे ऋषि के शाप से वे भी, मुक्त स्वयं को कर न सके || 23 ||
पुत्र वियोग में प्राण त्याग कर ही, वे शाप से मुक्त हुए |
राम सरीखे पुत्र के होते हुए भी, कर्म फल से न विमुक्त हुए || 24 ||
भगवान कृष्ण ने भी, व्याध के तीर से छोड़े प्राण |
गांधारी के शाप को सत्य किया, कर्म फल नियम को दिया नव त्राण || 25 ||
व्याध को दिया आश्वासन , इसमें तनिक न दोष तुम्हारा है |
मुझे तुमने मेरे पूर्व जन्म के, छल के कारण मारा है || 26 ||
कर्म जो मैंने किया था छल से, फल तो मुझको पाना था |
कर्म-फल से मुक्त कोई नहीं, यह तो जाने का बहाना था || 27 ||
गीता में स्वयं कहा प्रभु ने , जग में मेरा प्रिय कोंई नहीं |
न ही मुझे अप्रिय मुझे कोई, मेरा जग में है कोंई नहीं || 28 ||
स्वयं अपना उद्धार करो, आत्मा को श्रेष्ठ बनाओ तुम |
उत्थान सोपान पर रखो कदम, अपना कर्म स्वयं बनाओ तुम || 29 ||
मैंने पथ दिखलाया है, चलने का कर्म तुम्हारा है |
आप अपना उद्धार करो, प्रत्येक पथिक को मैंने तारा है || 30 ||
जग में प्राणी जो लेकर आता , वह उसके ही कर्म का खाता है |
शुभ अशुभ जो भी करता , खाते में लिख जाता है || 31 ||
हे मानव ! जो तुमने पाया है , वे कर्म तुम्हारे अपने हैं |
आज के उज्ज्वल कर्म ही, कल के भविष्य के सपने हैं || 32 ||
कर्मों के खाते में, जितना ही सत्कर्म का भाग अधिक होगा |
उतनी ही सुख शांति पाओगे, दुखों का उतना ही क्षय होगा || 33 ||
ईश्वर का कोई हाथ नहीं, कर्मों का अपना अलग नियम |
अपनी करनी से ही मानव, पाता है फल नित प्रति क्रम-क्रम || 34|
हे मानव ! नश्वर जगत में , आप अपना उद्धार करो |
उत्थान के पथ को तय करके, जीवन लक्ष्य साकार करो || 35 ||
Satya vachan…..Aaj kal ham apne karam sudharne ki jagah doosron ke sar theekra fod rahe….laalach…swarth ke vash ho apne karmon ko nahin dekhte….apne hi karmon se ham apni kismat ka nirmaan karte hain…. Karmon ka fal harek prasthiti mein milna hi hai…bahut hi khoobsoorarat…karam karne ko prarit karti rachna…..
धन्यवाद शर्मा जी
बेहद खूबसूरत रचना. लम्बी होने के बावजूद बांधे रखती है
आदरणीय शिशिर जी जी प्रशंसा के लिए आपका धन्यवाद और आपका आभार |
या कहु, पढना शुरू किया तो पढता ही चला गया,पहले लगा बढ़ा है रहने दू पर जब एक बार शुरू किया तो क्या कहने, हर एक घटना को स्पष्ट करते हुए,वाह भाई वाह……….. भगवान् भी कर्म से बधे है, सचमुच!
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी प्रशंसा से लिए बहुत बहुत धन्यवाद आप जैसे प्रशंसा ही मेरी लेखनी को बल देते हैं |
सुन्दर भावों से सुसज्जित ………..सुन्दर रचना………..
आदरणीय विजय कुमार सिंह जी प्रशंसा के लिए आपका धन्यवाद |