काश लौट आये
मेरे बचपन के दिन ।
वो खेलना, कूदना ,
न चिन्ता, न फिकर ,
सब याद आते मुझे।
वो माँ का डाँटना,
प्यार करना,
अपने हाथो से खिलाना,
हाथ पकड़ स्कूल पहुंचाना,
सब याद आते मुझे।
वो गिल्ली डण्डा ,
पतंग उड़ाना ,
कंचो से खेलना,
सब याद आते मुझे।
वो दुर्गा पूजा के दिन,
नई ड्रैस रोज़ पहनना,
दोस्तो साथ घूमने जाना,
सब याद आते मुझे।
वह बारिश के पानी में भीगना,
कागज़ की नांव बनाना ,
सब याद आते मुझे ।
वह बीमार पड़ना,
रात भर माँ का जागना,
सर पे हाथ सहलाना ,
सब याद आते मुझे।
वह १५ अगस्त,२६ जनवरी,
त्योहार की तरह मनाना ,
सब याद आते मुझे।
काश लौट आये,
मेरे बचपन के वो दिन।
‘अनु माहेश्वरी ‘
चेन्नई
खूबसूरत भाव…..हाँ….काश वह लौट आएं….वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी……
अनु जी अपने मेरे बचपन को फिर से जिन्दा कर दिया बहुत खूब लिखा आपने
सुंदर रचना…………………ek बार “चंचल मन” पढ़ें बचपन की कुछ यादें अवश्य आएँगी.
बचपन की यादे ताजा कर दी आपने, बहुत खूब, प्यारी रचना!