यह देश है सभी का, सभी को है जीना
कण-कण मे यहाँ राम रहीम का पसीना
धर्म के पहरेदारों ने है अमन चैन छीना
रंगो को बाँट कहते काशी मक्का मदीना
धर्म के ठेकेदार दीमक बन हमे चाटते है
हमारी अखण्डता को मजहब में बाँटते हैं
कर बिष-बमन, अमन की जड़ काटते हैं
खुद हैं छटे छटाये, हमको भी छाँटते हैं
धर्म के रहनुमा जब अपनी बंसी बजाते हैं
भूल मानवता हम झट भुजंग बन जाते हैं
बहकावे मे आकर नीच पशुता दिखलाते हैं
डस अपनो को, नफरत का बिष फैलाते हैं
लहूँ जंगे आजादी के दिवानो का बहा था
बलबूते जिसके ब्रितानी हूकूमत ढहा था
कुर्बानी का मातम सबने बराबर सहा था
इंकलाब बोलने में यारो मजहब कहाँ था
मत बँटो तुम मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे में
राह चलने से पहले जानो उसके बारे में
सच्चा खुदा रहता हम सबके भाईचारे में
सबको साथ लेकर जीयों मधुर झंकारे मे
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सुरेन्द्र नाथ सिंह “कुशक्षत्रप”
Aapki kalam ko bakshish ho…..madhur jhankaar sab ke dilon mein gunjaayemaan ho….. Tatha astu……behatareennnn pyar ke bhaavon se behatareennnn rachna……
सी एम् शर्मा जी क्या कहूँ आपकी प्रतिक्रिया पर, पर धन्यवाद ही है मेरे पास…..!
बहुत बढिया रचना सुरेन्द्र
शिशिर सर आशीर्वाद के लिए आभारी हूँ!
बेहतरीन पैगाम दिया है आपने अमन का ………………………..बहुत ही बढ़िया सुरेन्द्र जी !
धन्यवाद सर्वजीत सिंह जी…..!