बच्चे लड़ते है
झगड़ते है
और लड़ाई -झगड़ा कितना
बड़ा भी क्यों न हो
सब कुछ भूलकर
बच्चे फिर से दोस्त बन जाते है
एक पल में ही.
भुल जाते है लड़ाई की बातें
आपनों के बीच दुश्मनी भुलते है
और फिर से दोस्त बन जाते है.
आशा करता हूँ, हम भी
उन बच्चों जैसा
गुस्सा, हिंसा और द्वेस
सबकुछ छोड़कर
एक सुनहारी
समाज का निर्माण करेंगे.
(लिओ टल्सटय की एक कहानी पढ़कर यह कविता रचा गया है)
Sahi kahte hain aap…..
bahut badiya sir……………