इश्क़ ईबादत करनी है तो
दिल के चौबारे पे निकल
दो क़दम मैं जो बढूँ तो
एक क़दम तू भी तो चल….
गिरना है तो दोनों मिल कर
गिर जाएँ कुछ इस क़दर
मैं न बदलूँ तू ना बदले
बदले ज़माना तो जाये बदल…
इश्क़ इबादत करनी हो तो….
यूँ ही नहीं आती है लबों पे
कभी किसी की मुस्कराहट
सौ गम दबते है दिल में तब
हंसी दिखती है होठों पे निकल…
इश्क़ ईबादत करनी है तो…
एक मतलब से पास आये
एक मतलब से छोड़ गए वो_
है ये ज़माना बड़ा सयाना
एक हरेन ही है कम अकल…
इश्क़ ईबादत करनी है तो
दिल के चौबारे पे निकल…
दो क़दम मैं जो बढूँ तो
एक क़दम तू भी तो चल…
-हरेन्द्र पंडित
Khoobsoorat khyaal mohabbat ka….
हरेंद्र खूबसूरत भाव. पर रचना थोड़े और सुधार से अधिक पठनीय हो सकती है. प्रयत्न करना
बहुत बहुत धन्यवाद मधुकर जी.. आपका सुझाव मेरे लिए अमूल्य है..
bahut badiya soch sir…………………………
खुबसूरत भाव सम्प्रेष्ण को दर्शाती रचना…….!