पिताजी देकर गए थे
मोटे काँचवाले चश्मा
उसे याद रखने के लिए
मेरे लिए उसका अंतिम उपहार
उस चश्मा से देखता था
धनी -निर्धन, छोटा -बड़ा
अन्धा -लँग़ड़ा सबको एक समान
और पढ़ाते थे
सुख -शान्ति और प्यार की अध्याय
उसके जैसा मैं भी
देखना चाहता हूँ
सबको एक समान
और वह चश्मा
मेरी मृत्यु से पहले
देकर जाना चाहता हूँ
अपने बेटे की हाथ में.
अच्छे भावों को दर्शाती रचना.
Bahut khoob….aise hi toh sanskaar peedhi dar peedhi chalte hain….
धन्यवाद शर्मा जी, आपको मेरी कविता अच्छी लगती हैं.