हम औरतें
हृदय में
लज्जा और अपमान की
दर्द और बोझ लेकर
यहाँ से वहाँ
क्यों दौड़ते रहेंगे
किसी की बलत्कार के बाद
हत्या होने पर
या किसी को
जिन्दा जलाने पर
घर से निकलकर
मृत आत्मा की शान्ति
के लिए
सड़क पर मोमबत्ती
क्यों जलायेगें
हम भी तो
बन्द मुट्ठी को आसमान की अोर
दिखाकर
लज्जा और अपमान के
खिलाफ बोल सकेंगे
पत्थरों से आग
जला सकेंगे
और उस आग से
बुरे लोगों का
बुरा मनसिकता को
जला सकेंगे
Bahut sahi kaha aapne….jab tak insaan khud kamzor hai usko tabhi tak dabaaya jaata hai….kab tak moun hoke Yeh atyachaar sahan kiya jaaye…Yeh faisla khud ko hi lena hai….bahut khoobsoorat or dridta ke baahv hain….Chak do fatte….apni muthi main taakat bharo….Thok do….
धन्यवाद शर्मा जी.प्रतिक्रिया देने के लिए………
सामाजिक उपेक्षात्मक बुराई के खिलाफ सोचने को विवश करती सुंदर रचना…..!
धन्यवाद सुरेंद्र जी, आप लोगों की प्रतिक्रिया मुझे आेर लिखने की शक्ति देती है
बुराई लिटाते चलना डगर कठिन
चादनी रात हो तो भी सफर हसीन|
मौसम की मार बहुत सही अबतलक
बदनुमा धब्बे को हटाना नहीं कठिन ||
धन्यवाद सर जी प्रतिक्रिया देने के लिए. आपको मेरी कविता अच्छी लगी. आपको बहुत -बहुत धन्यवाद
bahut badiya sir……………….
औरतों के मन की पीड़ा को बहुत ही अच्छे ढंग से दर्शाया है आपने …………………… बहुत बढ़िया !!