जवानी गई, आगया बेरहम बुढ़ापा
बुढ़ापा, बुढ़ापा, बुढ़ापा, बुढ़ापा!!
जिन्दगी शुरू हुई थी बचपन से
खत्म सी लगती है अब तन से
वर्जिश होती थी जहाँ शाम सवेरे
कापती है हड्डिया सारे बदन से
छाने लगी चहुओर घोर सियापा
बुढ़ापा, बुढ़ापा, बुढ़ापा, बुढ़ापा!!
जवानी गई, आगया बेरहम बुढ़ापा
बुढ़ापा, बुढ़ापा, बुढ़ापा, बुढ़ापा!!
जवानी मे घुमते थे बने जो शेर
झुक गई कमर दात हो गये ढेर
झूलती है झुरियाँ गालो की अब
ब्याधियों ने लिया है तन को घेर
नही होता थोड़ा भी आपी-धापा
बुढ़ापा, बुढ़ापा, बुढ़ापा, बुढ़ापा!!
जवानी गई, आगया बेरहम बुढ़ापा
बुढ़ापा, बुढ़ापा, बुढ़ापा, बुढ़ापा!!
बदहजमी अपच हर पल है सताता
आखों से अब नजर कम है आता
अनुभव सब दब रहे अकेले अकेले
कोई पास न बैठे किसको बाताता
रातों मे यादों का खुलता लिफाफा
बुढ़ापा, बुढ़ापा, बुढ़ापा, बुढ़ापा!!
जवानी गई, आगया बेरहम बुढ़ापा
बुढ़ापा, बुढ़ापा, बुढ़ापा, बुढ़ापा!!
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सुरेन्द्र नाथ सिंह “कुशक्षत्रप”
(कुछ दिन पहले अपने पूज्यनीय बाबू जी को देखकर मेरे मन में बुढ़ापा को लेकर जो अभिव्यक्ति पनपी, उसे कलमबद्ध किया है)
फोटो देख कर तो नहीं लगता……..हाहहाहा……………….बहुत बढ़िया चित्रण बुढ़ापे का सुरेन्द्र जी
मनिंदर जी, मै रोजी रोटी के तलाश में पिता जी से बहुत दूर रहता हूँ ।इस बार घर जाने पर उनको देखा, तो यह रचना कलम से निकल पड़ी
सुरेन्द्र मुझे माफ कीजियेगा, मैंने तो सिर्फ मजाकिया लहजे में कहा था, चाहे छोटा चाहे बड़ा भाई समझ,
दिल पर ना लीजिए, में आप की भावनाओ को समझ सकता हु | एक बार से तहे दिल से माफ़ी |
क्या मनिंदर जी, आपके विशाल ह्रदय को आपकी रचनाओ के माध्यम से समझ चूका हूँ,माफ़ी किस बात की…. आपने जो कहाँ वह मेरे लिए एक दोस्ताना अंदाज ने कहाँ और उसमे कोई बुरी लगने वाली बात है ही नहीं।
अति आभार आपका रचना को पढने और बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने हेतु
बहुत खूबसुरत सुरेन्द्र ……..बुढापे के लिये आ गई के स्थान पर आ गया उपयोग करे ।
निवातियाँ जी, अमुल्य सुधार के लिए आपका कोटि कोटि आभार, आगे भी इस तरह की भाषागत और व्याकरण की कोई गलती दृष्टव्य हो तो अवश्य बताएं। मै इसे अपना भाग्य समझता हूँ।
प्रतिक्रिया के लिए पुनः धन्यवाद!
अमुल्य की जगह बहुमूल्य समझे निवातिया सर!
इस निश्छल प्रेम के लिये हृदय से आभार आपका सुरेन्द्र ……यह हम सब की जिम्म्दारी है कि एक दुजे का मार्गदर्शन करे, क्योकि कोई भी स्वंय मे पूर्ण नही होता, ऐसा मेरा मत है ।।
Nivatiya ji, मै भी यही मानता हूँ। आपके शब्द ही मेरे भी है।
Bahut achi Kavita hai aapki Surrender ji
मञ्जूषा मैडम, आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए कोटि कोटि आभारी हूँ….!
बहूत खूबसूरत रचना सुरेन्द्र जी
अभिषेक जी धन्यवाद आपका…..!
जीवन-चक्र का मार्मिक वर्णन अपनी रचना में आपने किया है सुरेन्द्र जी अति सुन्दर…..,
मीना mam, कोटिश धन्यवाद आपको……..!
Bahut marmik….sanvedansheel….or Yeh budhaapa abhishaap tab ban jaata jab apne hi bachhe saath na dein…sab kar sakne ke baad jaanboojh kar ignore karein….poojniye baabu ji ko bhagwaan sehat bakshe…or aap ko unka aashirwaad…. Kalam ke dhani toh hain hi…bhaavon ke bhi…..badhaayee Aisi rachna ki….Jo apne mein ek sandesh vaahak bhi hai…..
सी एम शर्मा जी, आपने भावुक कर दिया अपनी अंतर्मन की बात कहके, निशब्द हूँ।
आपका निरंतर उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद!
वास्तविकता से भरा चित्रण सुरेंद्र ………….
शिशिर मधुकर जी आशीर्वाद के लिए बारम्बार हाथ जोड़ता हूँ…..!
बुढ़ापे में शरीर के दर्द और बच्चों के अलग रहने की कसक कमर को दोहरा कर ही देती है …………………………….. बहुत ही बढ़िया सुरेन्द्र जी ……………….. माँ बाप को प्यार करने वाला बेटा ही इस बात का अहसास कर सकता है !!
सर्वजीत सिंह जी आपकी प्रतिक्रिया मुझे भावुक करने के साथ साथ असीम उर्जा का संचार कर रही है। आपको मेरा प्रणाम!
बहुत खूब सुरेन्द्र जी…
मैं दुआ करता हूँ कि आपको अपने बुढ़ापे में ऐसी कोई असुविधा पेश न आये।
हरेन्द्र पंडित जी, काश आपकी दुआ कबूल हो
आपके असीम प्रेम के लिए धन्यवाद देता हूँ।
: सुरेन्द्र नाथ सिंह कुशक्षत्रप जी शुभकामनाएं
शुखमंग्ल जी आभार…….!
पढ़कर बुढ़ापा शारीर बहुत जोर से काँपा, बहुत खूबसूरत चित्रण. बधाई………………
रचना पसंद आई, इसके लिए अति आभार विजय जी!
बेहतरीन रचना सुरेन्द्र जी l आपने बुढ़ापे की स्थिति का सच्चाई के साथ बहुत ही सुंदर वर्णन किया है l
राजीव गुप्ता जी तहे दिल से आपका शुक्रिया!
गई जवानी जिस्म पर छाया बुढापा मतलब फिर मन में आया होगा बचपना जागा होगा कुछ सपना चाहत हुई होगी पास हो कोई अपना,अब तक जिन्होंने पूरा किया अपना हर सपना क्यू ना अब करें हम पूरा उनका सपना पूरा कर उनका सपना एहसास कराऐ पास है को उनका अपना!
गई जवानी जिस्म पर छाया बुढापा मतलब फिर मन में आया होगा बचपना जागा होगा कुछ सपना चाहत हुई होगी पास हो कोई अपना,अब तक जिन्होंने पूरा किया अपना हर सपना क्यू ना अब करें हम पूरा उनका सपना पूरा कर उनका सपना एहसास कराऐ पास है कोई उनका अपना!
आपकी प्रतिक्रिया अद्वितीय है, धन्यवाद!
बड़ी भावनात्मक कविता है ,पर बुड़ापा. भी जीवन की एक सच्चाई है जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता पर उसे सँभालने के लिए बच्चों के साथ की बहुत ज़रुरत होती है और हमारे देश में अभी भी अच्छे संस्कार मौजूद. हैं .और आशा करती हूँ सदा रहेगी , बहुत २ बधाई
हाँ mam, सच्चाई तो यही है। आपने मेरी रचना को इतने प्यार से पढ़ा और मुझे अपनी भावनाओ से अवगत कराया, इसके लिए कोटि कोटि आभार!
आपके पूजनीय बाबू जी को सादर प्रणाम, हृदय के भीतर से जब कोई रचना प्रकट होती है..तब ऐसी भावनाएं अपने आप स्फुटित होती है ।
बहुत अच्छे…धन्यवाद।
मार्कण्ड दवे जी तहे दिल से आभार आपका प्रतिक्रिया के लिए!
बहुत सूंदर रचना है आपकी ,