क्यों मेरी ज़िन्दगी पर मेरा इख़्तियार नहीं है
क्या इस पर अब मेरा कोई भी अधिकार नहीं है।
ज़िन्दगी के खेल में कैसे मैं इतनी पिछड़ गई
कि अपने ही सपनों से अब मैं फिर बिछड़ गई।
संवरने लगी थी ज़िन्दगी मेरे नादां अरमानों से
क्यों मैं इन्हें संभाल नहीं पायी वक़्त के तूफ़ानों से।
ये वक़्त भी मुझसे जाने क्या-क्या खेल खेलता है
क्यों मन मेरा हर तूफ़ान को हंसकर ही झेलता है।
चेहरे की यह हंसी मेरे दिल का दर्द क्यों बढ़ा रही है
यह किसकी दुआएं हैं जो आज भी मुझे हंसा रही है।
हंसी मेरी सिर्फ दिखावा बनकर आज रह गयी है
जैसे इस तिजोरी की चाबी मुझसे कहीं खो गयी है।
बंद है तिजोरी में हंसी और चेहरे पर है एक ख़ामोशी
क्या कभी वापस मिल पाएगी मुझे मेरी वही हंसी।
बोलती बहुत हूँ मैं पर फिर भी कुछ बोल नहीं पाती हूं
समझ नहीं आता क्यों अपनों से अपना दर्द छिपाती हूं।
bahut hi badiya lakshmi ji………………..
dhanyvad mani ji
खूबसूरत रचना लक्ष्मी ……….
shukriya shishir ji
सुंदर रचना ……………..
protsahan ke liye aabhar vijay ji
मनोरम औऱ दिलकश रचना ..
dhanyvad singh ji
बहुत ही खूबसूरती सी मनोदशा का हाल-ऐ-ब्यान…..
prashansha ke liye bahut bahut aabhar
Beautiful……………..lakshmi !!
thanks for appreciation d.k. ji
बहुत बहुत बधाई ऐसी खुबसूरत रचना के लिए……….!
dhanyvad surendra ji
बहुत ही बढ़िया …………………………………….. लक्ष्मी जी !!