उठो लाल अब आँखें खोलो,
जल के छींटे से मुंह धो लो,
मम्मी थोड़ा तो देर ठहरना,
मुझको नींद है पूरी करना,
मम्मी को तब गुस्सा आया,
हाथ पकड़ बिस्तर से हटाया,
स्कुल के समय का रखो ध्यान,
तुमको इतना भी नहीं है ज्ञान,
विलम्ब हो रहा घडी तो देखो,
दूसरे बच्चों से कुछ सीखो,
नित्य कर्म से मुक्त हुआ,
बच्चा थोड़ा उन्मुक्त हुआ,
मम्मी मुझको स्कूल न जाना,
आज ड्राइंग है घर ही बनाना,
मम्मी को फिर गुस्सा आया,
जबरन पकड़कर ड्रेस पहनाया,
अच्छा मम्मी खिलौना दिलाना,
मैंने आपही की बात है माना,
रोज-रोज तुम करते ड्रामा,
तुम्हारी पढाई है सारेगामा,
पैसे नहीं हैं आज मेरे पास,
तुम न रखना मुझसे आस,
दो कदम पर फिर वह बोला,
अपनी मीठी जुबान को खोला,
एक आइसक्रीम ही दिला दो,
खिलौना नहीं तो इसे खिला दो,
मैंने कहा न, आज कुछ नहीं,
पापा जो कहते, हैं बातें सही,
अच्छा एक चॉकलेट ही दिला दो,
या फिर कोल्ड ड्रिंक ही पिला दो,
अब बोले तो करुँगी पिटाई,
तुमने सीख रक्खी है ढिठाई,
अच्छा मम्मी एक बात बोलूं,
आप कहो तो जबान खोलूँ,
मम्मी प्लीज एक बार सुन लो,
फिर अपनी ही बात चुन लो,
अच्छा बोलो क्या है कहना,
बिन बोले तुमको नहीं रहना,
मम्मी तुम गुस्सा नहीं करना,
सिर्फ एक टाफी के पैसे भरना,
अंकल मुझे दो टाफी देना,
दो से तुमको क्या है लेना,
एक टाफी भैया जी को दूंगा,
मैं तो सिर्फ एक ही लूँगा,
मम्मी को आ गयी हंसी,
बच्चे की चंचलता पे फँसी ।
विजय कुमार सिंह
vijaykumarsinghblog.wordpress.com
अच्छे भाव विजय …….
रचना की सराहना के लिए आपका ह्रदय से आभार.
bahut badiya vijay ji…………bhut khub surat
रचना की सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
बहुत ही खूबसूरत रचना है विजय जी
रचना की सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
बालमन का सुन्दर चित्रण किया है विजय जी !
सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
अति सुन्दर रचना विजय जी
बहुत बहुत धन्यवाद अभिषेक ji.
बाल मन के साथ अपने मन का भी चित्रण… हा हा हा….हमारा कौन सा चंचल नहीं…हाँ हठ और चंचलता में फरक….बहुत खूब….
आप तो रचना के मूल के पारखी हैं. आपकी पसंद मतलब रचना पास. सराहना के लिए आपका ह्रदय से आभार.
विजय आपकी इस रचना कि सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि बालमन कि लालसाओं के अभिभूत उसकी निष्कपटता को बरकार रखते हुए इस बात को प्रमाणित करना नहीं भूले कि “बच्चे ईश का रूप होते है”
बहुत अच्छे !!
आप रचना को बड़ी ही बारीकी से परखते हैं, आपकी परख हमे विश्वास प्रदान करती है. रचना की सराहना के लिए आपका ह्रदय से आभार.
बहुत ही सुंदर ‘चंचल मन’
बहुत बहुत धन्यवाद ANAND ji.
विजय जी जब मै रचना पढ़ रहा था तो मुझे अपने बेटे की बाते याद आ रही थी। सचमुच में काफी हद तक ऐसा ही होता है उसके साथ। दुर्भाग्यवश मै उसके साथ नहीं रहता पर उनकी मम्मी से मुझे क्रिया कलाप का भान होता है। बहुत खुबसूरत और बालमन की गहराई को सम्म्झते हुए लिखी गयी रचना!
कितनी ख़ुशी की बात है की मेरी रचना का कुछ हिस्सा आपके जीवन की हकीकत है. सराहना के लिए धन्यवाद.
बच्चे के मन की चंचलता को बहुत ही खूबसूरती से बयां किया है ……………………… बहुत ही बढ़िया विजय जी !!
रचना की सराहना के लिए आपका ह्रदय से आभार.
Nice Poem Vijayji
रचना की सराहना के लिए आपका ह्रदय से आभार.