ये दर्द की दास्ताँ नहीं
ये हमारी जिंदगानी है
एक भूल हुई हमसे ये हमारी नादानी है
भूल ये हुई की बेटी खेली मेरे आँगन मैं
अब मिटा दिया तूने अपने दमन से
ऐसा क्यों ऐसा क्या हुआ
कि तूने यह कदम उठाया
पैदा होते ही तूने मिटटी मैं सुलाया
अभी तो दुनिया देखि नहीं थी
लेकिन फिर भी क्यों पड़ा दर्द सहने
बेटे की चाहत मैं बेटी को भूल गया तू
बेटी का अस्तित्व नहीं तो तुम्हारा वंश नहीं
और वंश नहीं तो तुम्हारा अंश नहीं
बेटी माँ दुर्गा है तो माँ काली भी
माँ बनकर तुम्हे सम्भाला भी
अब सब बराबर है बेटा बेटी
अब सब को बराबर दो दाल रोटी
संतोष कुमार
990712713
बहुत अच्छे भाव…..खूबसूरत…..
बहुत सुंदर भाव………………………….एक बार “मुझे मत मारो (बेटी)” पढ़ें, समाज के बेहतरी के उद्देश्य से लिखी गयी रचना है.
ह्रदय के भावो को शब्द देने का अच्छा प्रयास …….!!
सत्य यही है , सन्देश का भाव लिए अनुपम रचना…….