परिचय एक ऐसा भी
यूँ ही जब कड़ी मेहनत और धूप मे तप जाता हूँ मै
पूस की सर्द रातों मे जब ठण्ड से सिहर जाता हूँ मै
तब कहीं जाकर उस उम्दा स्वाद को अनुभव कर पाता हूँ मै
करोड़ों लोगों की दिनचर्या मे शामिल हो चुका हूँ मै
तब कहीं उनको आनन्द का अनुभव दिलाता हूँ मै
दिवार के कोनों और फुटपाथ पर अपनी छाप छोड़
रहा हूँ मै
जो मेरे आदी बने हैं उनके दाँत मसूड़ों पर दाग लगा
चुका हूँ मै
यहाँ तक कि अब कैंसर का कारण भी बन चुका हूँ मै
घोट-घोट कर जो मुझे चबाते हैं उनमे कईयों का दम
घोंट चुका हूँ मै
साँस की नली और फेफड़ों तक अपनी पहचान बना चुका हूँ मै
हर गली नुक्कड़ की छोटी बड़ी दुकानों पर देखा जाता हूँ मै
मेरे धुएं और पीक से वातावरण को गंदा कर चुका हूँ मै
मेरे पैकेट पर चेतावनी पढ़कर भी करोड़ों के मुँह का स्वाद
बन चुका हूँ मै
यूँ ही नही सिगरेट,बीड़ी,तम्बाकू, गुटखा,खैनी,पान मसाला
आदी-आदी नामों से जाना जाता हूँ मै
( अनूप मिश्रा)
Anoopji…aapne pahle bhi Yeh rachna publish ki thi….aap kahna kya chaahte hain ismein….anand milta hai ya ki Yeh kahna chaahte ki haani…haani toh hai hi har nashe ki par aisa parichay deejea Jo aap dena chaahte hain….
You r right Babbu Ji …..dear Anoop something are missing
A poem is complete if it fulfill all component and give a message, your composition is saying alot but not give a concrete message……. Please observ seriously…..!