बरकत और इबादत के महीने को रमजान कहते है
कर ले अपने को जो पाक उसे मुशलमान कहते है
बेगुनाहों के बुजदिल कातिलों तुझे कौन सा नाम दूँ
क्योकि तुम जैसे नामर्दों को हम शैतान कहते है।।
अमन का जो राह दिखाएँ वह पाक कुरान होता है
मोहब्बत से जो जीते दिलों को वही सुल्तान होता हैं
दोष तुम्हारा नही, तुमको जेहादी बनाने वालों का है
जिनके अंदर इंसानियत नहीं, एक हैवान होता है।।
क्या तेरे नापाक कर्मों से कभी जन्नत नसीब होगी
मारे तुमने जों मासूम उनकी बद्दुआ तेरे करीब होगी
लाशों पर जश्न मनाने वाले वहशी भेड़िये जरा सुन
जिस माँ ने तुझकों पैदा किया वह बदनसीब होगी।।
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सुरेन्द्र नाथ सिंह “कुशक्षत्रप”
Speechless…………jai ho……
Babbu ji, aap kb se speechless ho gaye mitra……. kuchh to kahiye, mujh nachij ko…..!
हा हा हा….सर आप ने लिखा ही ऐसा है कि मेरे पास शब्द नहीं प्रशंसा में…बोलती बंद हो तो क्या कहूं……दिमाग उड़ गया…..mind blowing….. hahahahaha…..
अति सुन्दर रचना……………
विजय जी दिल से कोटि कोटि आभार……..!
bahut badiya……….
मनिंदर भाई, धन्यवाद आपको……….!
वाह वाह वाह सुरेंद्र जी
आनंद कुमार जी शुक्रिया……..!
ह्रदय की वेदना से उपजे आक्रोश को अचके शब्द में प्रस्तुत किया …सुरेन्द्र बहुत खूब ………साहित्यिक तौर पर कुछ शब्द अवश्य अटपटे से लगते है !!
ह्रदय की वेदना से उपजे आक्रोश को अच्छे शब्दों में प्रस्तुत किया …सुरेन्द्र बहुत खूब ………साहित्यिक तौर पर कुछ शब्द अवश्य अटपटे से लगते है !!
मूल्यवान प्रतिक्रिया के लिए सादर अभिनन्दन, गुस्से में शब्दों के साथ नापाक होना भी गलत है, अतएव आपकी प्रतिक्रिया के बाद मैंने तथासंभव परिवर्तन किये है ताकि साहित्यकी गरिमा बनी रहे, आप एक बार फिर अवलोकन करें और अपनी प्रतिक्रिया से हमे अवगत कराएँ…..!
बहुत बहुत धन्यवाद सुरेंद्र ……….आपकी भावनाओ की कद्र करता हु………अभी रचना सारमय है !!
धन्यवाद निवातियाँ जी, ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहें तो मुझपर अति कृपा होंगी…!
बेहतरीन रचना सुरेंद्र ………..
शिशिर मधुकर जी, अनवरत प्रेम रखने के लिए करबद्ध प्रणाम!
बहुत ही बढ़िया ………………. सुरेन्द्र जी !!
सर्वजीत सिंह जी, कोटि कोटि आभार प्रतिक्रिया देने हेतु….!
सुरेन्द्र जी एक बार फिर आपकी कविता लाजवाब है बहुत ही आसान से शब्दों में आपने रचना को उकेरा है जो की काबिले तारीफ है l बहुत खूब
राजीव गुप्ता जी, रचना को पढने और प्रतिक्रिया से अवगत कराने हेतु करबद्ध आभार!