एक पुरानी रचना आप सुधीजनो के समक्ष पुन: प्रकाशित कर रहा हूँ जो पॉच भाग मे है, कृप्या पढकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करे …..अन्य भाग भी संयोग शीर्षक से ही प्रकाशित है।
संयोग ……. (अंश पाँच )
संयोग (अंश पाँच )
{{चन्दन की लकड़ी }}
चन्दन के पेड़ से कटी
कुछ लकडिया बाजार चली
किस शाख के भाग्य क्या लिखा,
किस भाग के किस्मत क्या ठनी !
जंगल से निकल सुगंध बिखेरती
दूकानदार की रोज़ी का सबब बनी
सजी थी दूकान में अपनी भाग्य का
बाट जोहती अनेक टुकडे मे थी बटी !!
सहसा आई घडी बिछडन की
कुछ को खरीद ले गया पुजारी
जाकर मंदिर में थी वो घिसी
चढ़ी शिवलिंग के माथे पर बन तिलक सजी !
कुछ को ले गया लकड़हारा
जाकर वो मशीनो में थी कटी
नक्काशो ने फिर उसे तराशा
तब जाकर माला में थी गुथी !
आये भक्त कुछ राम, कृष्ण के
कुछ पीर पैगम्बर के साथ चली,
ले गए चंदन के मणको की माला
प्रभु स्मरण के नाम पर थी मिटी !!
फिर कुछ लोगो का दल दुकान पर आया
अश्रु बहते नयनो में शौक था छाया हुआ
लेकर अपने संग बाकी चन्दन के टुकड़े
वो शव का अंतिम संस्कार करने चला !!
देखो “संयोग” इन टुकड़ो का नियति कैसी लिखी
कल थी हिस्सा आज वो “शव दाह” के लिए चली
चढ़ा दी गयी घी सामग्री के संग चिता की वेदी पर
मिट गयी आज वो आग में धूं धूं कर जल उठी !!
किस तरह बिता जीवन अब तुम हाल सुनो
एक ही अंश पर क्या क्या बीती बात सुनो
अलग-2 टुकड़ो की किस्मत भिन्न कैसे बनी
कोई माथे सजी….!!
कोई हाथोे सजी…..!!,
कोई आग में थी जली ……………………..!!
कोई आग में थी जली ……………………..!!
कोई आग में थी जली ……………………..!!
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रचनाकार ::–>>> [[ डी. के. निवातियाँ ]]
वाह ……………….. लाजवाब निवातियाँ जी ……………………. चाहे लकड़ी हो या इंसान सब की अपनी अपनी किस्मत होती है !!
सत्य कहा आपने तहदिल से शुक्रिया आपका सर्वजीत जी ……………और ईद की बहुत बहुत मुबारकबाद !!
Waaaahhhh….behatareennnn….laajwaab….
Chandan ki lakadi insaan ki zindagi ek jaisee hi hai…bachpan sugandh deta sab ko…school ya college life bant jaati…Jo seekh gaya maa baap ke maathe ka tilak ban jaata hai….shaadishuda Jeevan mein har or banti jaata hai…Uske baad maala kabhi kisi ke naam ki kabhi kisi ke naam ki…ant mein wohi jalna hai….
सत्य कहा आपने तहदिल से शुक्रिया आपका बब्बू जी मेरा मंतव्य यह बताने का था की कर्मो उपरान्त भाग्य कैसे भिन्न हो सकता है…!! इस प्रसंग ने अन्य अंशों पर भी अपनी अमूल्य राय प्रकट करे !! अति प्रसन्नता होगी !!
ईद की बहुत बहुत मुबारकबाद !!
जहाँ तक मैं समझा हूँ जो माइथोलॉजी कहती करम का भोग मनुषय योनि करती है….वो जानवर की योनि में जाते हैं नहीं जाते हैं नहीं पता…हाँ लकड़ी या और किसी प्रकिर्तिक अवस्था /योनि में मनुष्य को छोड़ कर नहीं जाते……जो साक्षय कई जानकारों ने अपनी किताबों में लिखें हैं पुनर्जन्म के ऊपर ले कर उनमें उन्होंने लिखा जादातर ने की आदमी आदमी की योनि में ही जाता…औरत औरत की….लकड़ी या किसी और अवस्था में जाने का ज़िकर मुझे ज्ञात नहीं…हाँ समझाने के लिए रचनाओं के माध्यम से हम लिखते हैं…कुदरत ने भी समझाने के लिए हमें हर रूप में उसका समाधान किया हा…सूर्य अनुशासन सिखलाता है…कमल कीचड में भी खिलना जानता…ऐसे ही चन्दन हर अवस्था में खुशबू देना जानता…वह ज़िंदा और जल कर भी….हमारे ऊपर निरभर है हम कैसे कर्म करते…कर्म अच्छे हैं तो हम इसी के माथे का तिलक भी बन सकते…उसका और अपना गौरव बन सकते…और बहुत ही अच्छे हों तो परमात्मा खुद हमें अपने चरणों में स्थान दे सकते…लेकिन कर्म अच्छे हों बुरे हों….वो भोगने पड़ते ही हैं….बिना फल के कोई करम नहीं जाता…यह मेरा मत है…आप मुझसे बहुत ज्यादा साहित्यक ज्ञान रखते हैं…मेरे पास कुछ भी ऐसा ज्ञान नहीं है…जो थोड़ा बहुत कुछ पढ़ा है…सुना है…जाना है उसी आधार पे कहा है….गलती के लिया क्षमा प्रार्थी….सिर्फ आपकी आज्ञा का पालन करने हेतु लिखा…और मेरा कोई औचित्य नहीं……
बब्बू जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका, आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर अति प्रसन्नता हुई……..आपका कथन यथोचित है !!,
मेरा मंतव्य इस रचना के माध्यम से मात्र संयोग का दर्शाना है… कि संसार में किस किस तरह के संयोग बन जाते है, जो एक ही भाग के भिन्न अंशों को भिन्न परिस्थितियों से दो-चार होना पड़ता है !!
तहदिल से शुक्रिया एव आभार आपका की आप इतनी शिद्द्त के साथ हमे पढ़कर अपने विचार साझा करते है..ये आप साहित्य प्रेम का जीवंत उदहारण है !!
लाजवाब निवातियाँ जी
धन्यवाद आदित्य ………..!
ईद की बहुत बहुत मुबारकबाद !!
Marvellous ………………..
धन्यवाद शिशिर जी,…………….!!
ईद की बहुत बहुत मुबारकबाद !!
अति सुन्दर रचना…………..किस्मत-किस्मत की बातें हैं.
धन्यवाद विजय आपका ,…………….!!
ईद की बहुत बहुत मुबारकबाद !!
सर, आप सभी को ईद की बहुत बहुत मुबारकबाद !!
बहुत बहुत मयबारक आपको भी ……….खुदा आपकी हर ख्वाहिश को पूरी करने में आपको पथ प्रदर्शित करे !!
पहले तो ईद मुबारक निवातियाँ जी…………………..आपकी लेखनी बहुत कमाल की है जितनी भी तारीफ की जाये कम है |
धन्यवाद मनी ……….बहुत बहुत मयबारक आपको भी ……….खुदा आपकी हर ख्वाहिश को पूरी करने में आपको पथ प्रदर्शित करे !!
निवातिया जी, रचना पढ़कर भावुक हो गया मै, हम भी एक ही माली के चार बेटे पर अपनी अपनी किस्मत……. अजीब दस्तूर जिंदगी के……. किसी को माथे पर चढ़ना है तो किसी को पैरो में सजना , क्या कहू निशब्द हूँ…… आप साहित्य उपवन को यूँही नित्य नए नए रचनाओ से महकाते रहें, ऐसी कामना करता हूँ!
आपके अमूल्य वचनो का ह्रदय से आभारी सुरेन्द्र …….आप लोग इसी तरह से हौसला अफजाई करते रहे ……यही हमारे लिए सबसे बड़ा पारितोषिक है !!
पुन: आभार आपका !!