इस कीमती आत्म निर्भर मुस्कान को पाने के लिए
ना जाने कितने त्याग करने पड़े …..!!!
ना जाने कितने अरमानों को दिल में दफनाना पड़ा ..!!!
ना जाने कितने चाहतों की बलि चढ़ानी पड़ी…!!!
घर वालों के प्यार और उनके साथ से परे रहना….
अच्छे और बुरे वक़्त में माँ-बाप का साथ न मिलना…
तब कही जाकर ये आत्म निर्भर मुस्कान
आज इन होठों के घरौंदे में कैद हुई है….!!!
बहुत बढ़िया अंकिता जी…………
अंकिता खूबसूरत रचना. पूर्व में मेरे द्वारा प्रकाशित निम्न रचना भी पढ़े और अपनी प्रतिक्रिया भी भेंजे
मैं क्या हूँ ?
हाँ तुम्हारा साथ ही तो बंधन है सबसे बड़ा
जिसमे भूल जाता हूँ मै कि मैं क्या हूँ?
अब मुझे क्रोध भी आता नहीं है नियति पर
जो बार बार मुझे अकेला करती है
अब मैं समझने लगा हूँ उसकी ये मंशा
कि मैं समझूँ कि मैं क्या हूँ?
बार बार मिलने बिछड़ने का दुःख भी
अब मुझे नहीं कचोटता क्योंकि
जानता हूँ मैं कि कुंदन बनना है मुझे
बार बार लपटों में यूँ जाने के बाद.
शिशिर “मधुकर”
सुन्दर रचना आत्मनिर्भरता हमे मंजिल के करीब पहुँचाती है सुन्दर अंकिता जी ,
अंकिता जी बहुत खूब, क्या कहने और शिशिर जी का प्रतिउत्तर का तो कोई सानी नहीं!
बहुत खूबसुरत…. अंकिता ।।
Bahut hi khoobsoorat…..aap iss ko umar kaid mein badal do….waaahhhhhh kya kaid hai….
Madhukarji aapki parshansa ke liye shabd na milna majboori hai hamari…
आत्म निर्भर हो पाना बहुत मुश्किल होता है लेकिन जब आत्म निर्भर हो जाते हैं और जो सम्मान मिलता है तो मुस्कान आना स्वाभाविक है ……………………………… बहुत ही बढ़िया अंकिता जी !!
सुन्दर रचना के लिए आपको बधाई………………..