रख न सका अपने को सुरक्षित
बेकसूर इंसान यहाँ
जालिम जुल्म के घनचक्कर में लुट जाता अरमान यहाँ.
काल कोठरी के कालिख में
क्रूरता की हद हो गयी
दुर्जनता के दमन दांव में
कुचल रहा ईमान यहाँ
रख न सका अपने को सुरक्षित
बेकसूर इंसान यहाँ
है मशगूल जो अपने करम में
धौल धप्पा का शिकार हुये
जड़ता जड़ में पनप रही
जकड़ता जाता धीमान यहाँ
रख न सका अपने को सुरक्षित
बेकसूर इंसान यहाँ
किसके दम पर नाज़ करे हम
आज यहाँ खालिश है कौन ?
दिख जाता जिस मोड़ पर जाओ
छुपा हुआ हैवान यहाँ
रख न सका अपने को सुरक्षित
बेकसूर इंसान यहाँ
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डॉ.सी.एल.सिंह
खूबसूरत रचना और एक लाइन जो चार चाँद लगाती है “दिख जाता जिस मोड़ पर जाओ
छुपा हुआ हैवान यहाँ
रख न सका अपने को सुरक्षित
बेकसूर इंसान यहाँ”
अति सुन्दर डॉ लाल ……………….!!