हे जगदगुरू हे जगपिता, तुम जग के तारनहार हो ।
संसार की नैय्या के तुम ही, मात्र खेवनहार हो ॥१॥
हे जगदगुरू हे जगपिता…
बन्धु तुम्ही हो, सखा भी तुम, तुम ही हो माता, पिता तुम ।
तुम से सकल जग व्याप्त है, इस सृष्टि के कारण हो तुम ॥२॥
हे जगदगुरू हे जगपिता…
जीवन जगत में तुमसे है, संहारकर्ता हो तुम्हीं ।
इच्छामयी इस सृष्टि के, पालनकर्ता हो तुम्हीं ॥३॥
हे जगदगुरू हे जगपिता…
तुम हो सभी में व्याप्त, तुमसे ही सकल जग फूलता ।
उत्पत्ति तुमसे, प्रलय तुमसे, संहार तुममें झूलता ॥४॥
हे जगदगुरू हे जगपिता…
सबके ह्र्दय में वास करते, सब तुम्हें ही पूजते ।
देव, मानव, ऋषिगण, सर्वत्र तुमको ढूँढते ॥५॥
हे जगदगुरू हे जगपिता…
सूर्य, चन्द्र में प्रकाश तुम, वेदों में प्रवणाक्षर तुम्हीं ।
सरिताओं में सुरसरि तुम्हीं, मंत्रों में गायत्री तुम्हीं ॥६॥
हे जगदगुरू हे जगपिता…
देवों का देवत्व तुमसे है, भूतों के जीवन में तुम्हीं ।
पृथ्वी में गंध तुम्हीं से है, जल में हो रस बनकर तुम्हीं ॥७॥
हे जगदगुरू हे जगपिता…
अज्ञानहर्ता, ज्ञानदाता, परब्रह्म, पुरूषोत्तम तुम्हीं ।
ज्ञानियों के ज्ञान तुम ही हो, तपस्वियों के तप भी हो तुम्हीं ॥८॥
हे जगदगुरू हे जगपिता…
देवों में देवेन्द्र हो तुम्हीं, नक्षत्रों में तुम चन्द्रमा ।
वेदों में सामवेद हो तुम्हीं, हो प्रकाश में तुम पूर्णिमा ॥९॥
हे जगदगुरू हे जगपिता…
ऋषियों में नारद तुम ही हो, गन्धर्वों में चित्ररथ हो तुमहीं ।
सिद्धों में कपिल तुम ही हो, वृक्षों में अश्रव्त्थ हो तुम्हीं ॥१०॥
हे जगदगुरू हे जगपिता…
हो गज में ऎरावत तुम्हीं, अश्वों में उच्चश्रवा तुम्हीं ।
इस जग में जो भी दृश्य है, सब तुममें है, सब में तुम्हीं॥११॥
हे जगदगुरू हे जगपिता…
जान पाया जो तुम्हें, वह तुम्हींमय हो गया ।
वासना हटी, चिंता मिटी , वह तुममें ही है खो गया ॥१२॥
हे जगदगुरू हे जगपिता…
किस विधि तुम्हारे गुण कहूँ, बुद्धि की सीमा चुक गई ।
जो तुमने कहलाया कहा, लेखनी मेरी अब रूक गई ॥१३॥
हे जगदगुरू हे जगपिता…
बिन माँगे सब कुछ पा लिया , सब तुम्हारा ही तो प्रसाद है ।
इच्छा तुम्हारी सर्वोपरि, मन में न तनिक विषाद है ॥१४॥
हे जगदगुरू हे जगपिता…
समर्पण करो स्वीकार मेरा, भावना को दृढ़ करो ।
कर्तव्य पथ के इस पथिक का, पंथ और सुदृढ़ करो ॥१५॥
हे जगदगुरू हे जगपिता…
सर्वत्र व्याप्त हे जग प्रभो, तुम्हें बारम्बार प्रणाम हो ।
वृत्ति मेरी हो सात्विक, भक्ति मेरी निष्काम हो ॥१६॥
हे जगदगुरू हे जगपिता…
Aapne apne bhaavon mein “Geetaji’ ke vachnon ko lekhni mein daalne ki bahut sundar koshish ki hai….bahut khoobsoorat….
धन्यवाद शर्मा जी
सुंदर भक्ति रचना …………
आदरणीय शिशिर जी प्रशंसा के लिए आपका धन्यवाद
योगेश्वर की सुंदर वंदना…………………………….
आदरणीय विजय जी प्रशंसा के लिए आपका धन्यवाद