(१) इस जहाँ में आया हूँ,कुछ करके जाऊंगा
जीवन के सारे बाधाओं से लड़ के जाऊंगा |
जो लोग मेरी नाकामयाबियों पे हँसते हैं
किसी दिन सफल हो उनके गाल पे तमांचा जड़ के जाऊंगा |
(२) मैं कुछ भी लिख दूँ कलाम हो जाएगी
चलते रहो राही वर्ना शाम हो जाएगी
बड़ा गुरूर है न तुम्हे अपनी इज्जत का
प्यार करके देखलो नीलाम हो जाएगी |
(३) आज निकला अँधेरी रातों में सब सुनसान नज़र आया
छोड़ गया था बहुत पहले वो मकान नज़र आया
चहकते रहती थी खुशियां जिसके आँगन में
माँ के चले जाने के बाद वो वीरान नज़र आया
Good one awesome
बेहतरीन लाजवाब आकर्षक पंक्तियाँ …….
बेहतरीन लाजवाब आकर्षक पंक्तियाँ …….सर्वहारा
—————
सूखा है तन
भूखा है तन
औऱ बेचैन मन.
बहते पसीने में
मुश्किल से जीने में
कितना रूखा है तन
और बेचैन मन
श्रमजीवी श्रमिक
जो पाता पारिश्रमिक
है कितना बड़ा धन
और बेचैन मन.
उसके लहू का रंग
कौन कर रहा बदरंग
पूछता आम जन
और बेचैन मन.
रूह को तड़पता देख जाता नहीँ
वो अपना ही है
पर कोई आगे आता नहीँ
है ये कैसी जलन
और बेचैन मन.
ख्वाहिशें हर घर की
पूरा करे
इतनी जुर्रत कहाँ कुछ अधूरा करे
एक पल ही सही मिटा लेता थकन
और बेचैन मन
जर्रा जर्रा ऋणी है
उसके उपकारों का
कैसे कटता है दिन
बेसहारो का
वेदना में ही ओढ़ लेता कफ़न
और बेचैन मन..
!
!
??डॉ सी एल सिंह ??
क्या कहने सर ….आपके अल्फाजो ने अभीभुत कर दिय
— रख न सका अपने को सुरक्षित —
रख न सका अपने को सुरक्षित
बेकसूर इंसान यहाँ
जालिम जुल्म के घनचक्कर में लुट जाता अरमान यहाँ.
काल कोठरी के कालिख में
क्रूरता की हद हो गयी
दुर्जनता के दमन दांव में
कुचल रहा ईमान यहाँ
रख न सका अपने को सुरक्षित
बेकसूर इंसान यहाँ
है मशगूल जो अपने करम में
धौल धप्पा का शिकार हुये
जड़ता जड़ में पनप रही
जकड़ता जाता धीमान यहाँ
रख न सका अपने को सुरक्षित
बेकसूर इंसान यहाँ
किसके दम पर नाज़ करे हम
आज यहाँ खालिश है कौन ?
दिख जाता जिस मोड़ पर जाओ
छुपा हुआ हैवान यहाँ
रख न सका अपने को सुरक्षित
बेकसूर इंसान यहाँ
!
!
डॉ.सी.एल.सिंह
क्या कहने सर ….आपके अल्फाजो ने अभीभुत कर दिय
bahut khub parkash ji……………….
धन्यवाद मनी जी आपका
BEAUTIFUL………………….
बहुत आभार आपका सर
अंतिम दोनों अच्छे बन पड़े है.
बहुत धन्यवाद सर
Bahut hi khoob soorat….
बहुत शुक्रिया बब्बु सर