देखो चली है सज-धज के कायरों की टोली,
हाथ में हथियार उठाकर बोलें क्रूरता की बोली,
मनुष्य का धर्म मानवता जिसे समझते खोट,
धर्म की गलत व्याख्या करके लेते उसकी ओट,
दहशत का माहौल बनाते, है सत्ता की भूख,
दुनिया को डरा-धमका, दिखाते अपना रसूख,
वैसे तो यह पाला-पोषा महाशक्तियों का खेल,
लम्बी दूरी चलती गाड़ी तो कभी हो जाती डीरेल,
दहशतगर्दों को खड़ा कर खरीदते सस्ता तेल,
सस्ते तेल के बदले में महंगे हथियारों का सेल,
बिना किसी आतंक के हथियारों का क्या होगा,
कैसे परखा जायेगा हथियार, कैसे उन्नत होगा,
इनकी आजमाइश को चाहिए अनेकों दहशतगर्द,
गोलों की जब धधक उठेगी मिट जायेगी सर्द,
दुनिया किसके सञ्चालन में गुट निर्धारण होगा,
अचूक ब्रह्मास्त्रवाला ही दुनिया का लीडर होगा,
तेल से चलती विकास की गाड़ी, कहलाते हैं धनी,
तेल के कुओं पर कब्जे को ले अक्सर गुटों में ठनी,
दुनिया के सत्ता की चाभी ले रचते मुद्रा का खेल,
साथ निभानेवाले से मेल, बाकी हो जाते बेमेल,
विकसित सभ्यता की कुर्सी पर हैं इनके तुच्छ विचार,
पैदा करते फिर मिटाते आतंक, मानवता होती शिकार,
जबतक आतंक की लपटें उनके कदमों तक न जाए,
आँख खोलकर सोते रहते उनको होश न आये ।
विजय कुमार सिंह
vijaykumarsinghblog.wordpress.com
Bahut khubh …apki lines padh kar meri feelings kuch iss tarah bahar nikli :…..
मेरा धर्म ईमान न पूछो ,
मेरा करम ,भगवान् न पूछो
में इंसान हूँ या शैतान न पूछो
डर के बीज से जन्मा हूँ में
नफरत का पोधा हूँ बस में
मेरे खेतों में अनाज नहीं
हथियारों की फसल है उगती
अब इस पूरी दुनिया में है मेरा निशाँ
मेरी जंग , मजहबी , ईमान मजहबी
अभ तोह बस मेरी हर सांस मजहबी
जहां तक मुझे याद है विषय का चयन आपका था, मैंने शायद दो बेहतरीन रचनाएँ पढ़ी थीं. विषय ऐसा है कि जितना विस्तारित करें उतना ही कम लगता है. इसलिए मैंने थोड़ा विस्तारित करने का प्रयास किया. रचना के प्रति आपके भावों की ह्रदय से क़द्र करता हूँ. आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
बहुत ही सत्य फरमाया आपने ..बहुत खूब….. …….तमन्नाजी…क्या बात है आपकी….बहुत खूब…..
आपका ह्रदय से आभार.
बहुत सही अति सुन्दर विजय जी
आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
bahut khub vijay ji………………….
आपका बहुत बहुत धन्यवाद mani ji.
वर्तमान हालातो पर यथार्थ को उजागर करते खूबसूरत भाव ….अति सुंदर
पसंद के लिए आपका ह्रदय से आभार.
बहुत खूब ………………………………… विजय जी !!
पसंद के लिए आपका ह्रदय से आभार sir.
सत्यपरक खूबसूरत रचना विजय . बहुत खूब.
पसंद के लिए आपका ह्रदय से आभार सर.
बहुत खुबसूरत रचना विजय जी…….!
आपका बहुत बहुत धन्यवाद सुरेन्द्र ji.
बहुत खूब विजय जी ,आज कल संसार में जहाँ देखो बस तल्खियां ही नज़र आती हैं इनसानशांति का मतलब भूल गए हैं, लोग .बहुत अच्छा लिखा है आपने
आपने मेरे अनुरोध को स्वीकारा और रचना पढ़कर अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दी इसके लिए आपका ह्रदय से आभार.