देख के उसकी मोहिनी सूरत, फूल भी खिलना भूल गये !
ख्वाबो में उसके ऐसा उलझे, खुद से मिलना भूल गये !!
कब आई और वो आकर चली गई
उसे देख आँखे से ज्योति चली गई
न जाने कैसा जादू उसने फेरा
कि हम जगह से हिलना भूल गये !!
देख के उसकी मोहिनी सूरत, फूल भी खिलना भूल गये !
ख्वाबो में उसके ऐसा उलझे, खुद से मिलना भूल गये ।।
वो सांवरी – सलोनी सी थी
चंचल चितवन स्वामिनी थी
पास से गुजरी जब दामिनी सी
हम साँसे गिनना भूल गये !!
देख के उसकी मोहिनी सूरत, फूल भी खिलना भूल गये !
ख्वाबो में उसके ऐसा उलझे, खुद से मिलना भूल गये !!
खुदा की नायाब जादूगरी,
थी उसमे कूट – कूट भरी
ऩजरे उठाकर जिसने भी देखा
फिर वो रब से मिलना भूल गये !!
देख के उसकी मोहिनी सूरत, फूल भी खिलना भूल गये !
ख्वाबो में उसके ऐसा उलझे, खुद से मिलना भूल गये !!
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डी. के. निवातियाँ [email protected]
“खुदा की नायाब जादूगरी
थी उसमे कूट कूट के भरी
जिसने देखा फना हो गया
वो रब से मिलना भूल गया !!”
बहुत खूब कहा सर आपने. सच ही है.. खुद के मद में हम खुदा को भूल जाते हैं. बहुत सुन्दर रचना.
रचना पसंद कर अमूल्य प्रतिक्रिया देने के लिए हार्दिक धन्यवाद सोनित !!
अति सुंदर रचना…………………………
न जाने कैसा जादू उसने फेरा
मैं जगह से हिलना भूल गया !!
रचना पसंद कर अमूल्य प्रतिक्रिया देने के लिए हार्दिक धन्यवाद विजय !!
वाह निवातियाँ जी लफ्ज़ो की जादूगरी………………….
शुक्रिया मनी………………….!!
नायाब जादूगरी का कमाल….लफ्जों का इस्तेमाल हम देख ही रहे….हा हा हा….एक और प्यार भरा….मदमस्त…जो रब को भुला दे…वह सांसें गिने कैसे…और साँसों के बिना हिलें कैसे….हम अपने को समझाएं तो समझाएं कैसे के फूल नहीं खिले तो आखिर क्यूँ नहीं खिले….
आपके कीमती वचनो का ह्रदय से धन्यवाद एवं आभार बब्बू जी !!
तेरी सूरत के सिवा दुनिया में रखा क्या है ……………………………. लाजवाब निवातियाँ जी !!
सत्य कहा आपने ………ह्रदय से धन्यवाद आपका सर्वजीत जी !!
निवातियाँ जी आप तो जानते ही हैं किसी कवि ने कहा है कि “निंदक नियरे राखिए” . उसी भूमिका में मैं आपको कहना चाहूंगा कि मुखड़ा तो बहुत खूबसूरत है पर अन्तरे बेहतरीन भाव होने के बावजूद आपके स्तर की रचना होने के लिए सुधार मांगते हैं.
शिशिर जी ………बड़ी प्रसन्नता हुई काफी दिनों बाद आपकी मूलयवान प्रतिक्रिया पाप्त हुई ………..आपकी सलाह पर अवश्य अम्ल करूंगा और कोशिश करूंगा की और बेहतर कर आपकी जिज्ञासाओं पर खरा उतर सकूँ !!
तहदिल से शुक्रिया और ह्रदय से पुन: आभार !!
अति सुंदर रचना………………………… उम्दा रचना निवातियाँ जी
बहुत बहुत धन्यवाद अभिषेक !!
खूबसूरत रचना निवातियाँ जी !
शुक्रिया मीना जी ……………..!!
निवातियाँ जी बहुत बेहतरीन, लाजबाब…….शिशिर सर के साथ मै भी जाना चाहूँगा, अन्यथा न ले आप!
आप लोगो कि प्रतिक्रिया बहूमू्लय है सुरेन्द्र आपके आौर शिशिर जी के सुझाव पर गौर कर रचना मे यथांसम्भव सुधार किया है, कृप्या पुन: अवलोकन करे !
हृदय से आभार एवं अनेको धन्यवाद आपका ।।