बढ़े तू चल!
बढ़े तू चल!
नहीं कुछ ग़म, न मुश्किल कम!
न अब तू थम,सम्भाले दम!
तपाये दाह ,बढ़े उत्साह !
लगाये थाह ,जो मद्धिम राह!
चले जल थल!
बढ़े तू चल!
बढ़े तू चल!
हो सदल निडर,जो कठिन डगर!
जो रोध अगर ,हो विजित समर!
लिए दल बल, यूँ नद कल-कल!
नहीँ अब टल ,बढ़ें पल पल !
तू बने अनल!
बढ़े तू चल!
बढ़े तू चल!
जो तमस घिरा,हो अश्व गिरा!
अनन्त सिरा, अभेद्य निरा!
भ्रष्ट हो तन्त्र,हो जिर्णित यन्त्र!
संघ्य ले जन्त्र,हो शक्तिम् मन्त्र!
हो यत्न अचल!
बढ़े तू चल!
बढ़े तू चल!
-‘अरुण’
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बहुत खूब अरुण आपने तो ……..द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी के गीत “वीर तुम बढे चलो” की याद ताज़ा करा दी !!
अरे नहीं सर!
मैं या मेरी रचना इतनी महान हस्ती की यादों तक कैसे पहुचा सकती हैं।
उत्साहवर्धन के ये शब्द और आप सब का मार्गदर्शन ही प्रेरणा देते हैं।
आपको कोटिशः धन्यवाद!
अच्छा प्रयास है, अरुण जी
धन्यवाद!…………
मैं प्रयास जारी रखूँगा!
मैं लिखता रहूँगा….,,,,……….
बहुत ही सुन्दर अरुण जी
धन्यवाद अभिषेक जी!
अरुण जी कमाल……………
धन्यवाद मनी जी……….
अच्छे भाव और शब्दों के बेजोड़ संयोजन से चार चाँद लगाती रचना………!
आप के उत्साहवर्धन से मेरा मनोबल निश्चय ही बढ़ेगा।
मैं लिखता रहूँगा……….,.,,,,,
खूबसूरत प्रेरक रचना. अरुण एक बात अधिकार से कहना चाहूंगा कभी कभी कविताओं का ओज़ शब्दों की शुद्धता में हल्का पड़ जाता है. आपकी रचनाए अकादमिक स्तर पर पहुँचती है. शब्दों में आम भाषा के शब्द रचनाओं को और अधिक लोकप्रिय बना सकते है. इस कथन को कृपया वर्तमान परिवेश में देखना.
प्रथमतः आपको आपके द्वारा बहुमूल्य एवम् निरपेक्ष विवेचन के लिए नमन एवम् धन्यवाद देना चाहुँगा| इससे इस नवीन और वृहद मंच पर मुझे और मेरी टूटी फूटी लेखनी को अवश्य परिष्करण मिलेगा।
आपके इस कीमती सुझाव पर मैं अवश्य चलने का प्रयास करूँगा। यही परामर्श कुछ एक और अग्रेजो द्वारा पूर्व में प्राप्त कर चूका हूँ। आपको रचनाओं के उच्चकोटि के मूल्यांकन की आपकी विशिष्ट क्षमता हेतु बधाइयाँ|
कभी कभी शब्दों के हल्केपन को रचनाओं के स्तर से नीचे नहीं ले जा पाता। एक अलग आत्मतोष मिलता है । आनन्द की अनुभूति।बस इसी विवशता से ऐसा बार बार हो रहा है। मैं लड़ भी रहा हूँ।
मैं लड़ता रहूंगा!
मैं लिखता रहूँगा!….
आपको पुनश्च नमन!
Behatareenn…..madhukarji bhi sahi kah rahe hain……
धन्यवाद शर्मा जी!
रचना पसन्द करने और उस पर अपने बहुमूल्य विमर्श के लिए।
जीवन चलने का नाम है इसलिए हमेशां चलते ही रहना चाहिए, बहुत ही बढ़िया …………………………. अरुण जी !!
धन्यवाद सर्वजीत जी
लाजबाब …………………..!!
धन्यवाद सर……..