राज़ जो दिल में थी दबा दी गई क्या
ज़िन्दगी के पन्नों से वो नाम मिटा दी गई क्या ?
पहले तो ये इलाक़ा महकते रहता था
वो बाग़ कलियों वाली मिटा दी गई क्या ?
आने से जिसके खुशियों की रौशनी आई थी आँगन में
ये अँधेरा ?वो चिराग बुझा दी गई क्या ?
पूरा शहर तो भरा रहता था बारूदों से
ये शांति?सारे दहशतगर्दों को सजा दी गई क्या ?
धधक रहा है पूरा शहर लोगों की गर्मी से
फिर उसी पुराणी बात को हवा दी गई क्या ?
शराफत का मिसाल बना रहा हुँ मैं
बहक रहा हुँ आज, मुझे पिला दी गई क्या ?
आँचल माथे पर से रुखसत है बहु की
घर के रीति रिवाज़ हटा दी गई क्या ?
dude jabrdasst likha hai….salute boss
प्रकाश त्रिपाठी जी बेहरीन अल्फाज……..
bahut aabhar aapka
पहले तीन बन्धो में जेंडर के सही प्रयोग की आवश्यकता है
naya hu so i can committe mistakes..so keep on pointing out those sir
बहुत खूबसूरत…..मधुकरजी की बात पर गौर कीजे….
jarur gaur karunga
bahut badiya…………..
dhanyavad mani ji
Bahut shandaar,jaandar
सुन्दर भाव ……!!