छोटी सी ऐ जिंदगी सवाल क्यों बड़े बड़े
कब निकल गया बचपन कब जवानी में पड़े
हंसते हंसते निकल गये घर से जिमेदारीयों के तले
मिला नहीं वो चाहा ,दिये इम्तिहान बड़े बड़े
आज भी घर की दहलीज़ में कुछ तो भूल पड़े
हंसती हुई माँ के कुछ अश्क हम कैसे भूल पड़े
माँ की हर दुवां में कितने जवाब थे पड़े
हर इम्तिहान में अपनी माँ को देख पड़े
अपने से पहले हर खुशी माँ को दे पड़े
जिंदगी की हर मुश्किलों से हम जीत पड़े
:[email protected]अभिषेक शर्मा
बहुत खूबसुरत अभिषेक…….!
तारीफ के लिए तहे दिल से शुक्रिया …………………………. निवातियाँ जी
बहुत अच्छी रचना है अभिषेक
आपका बहुत बहुत आभार ……………आपका
बहुत खूब अभिषेक जी……………
आपका बहुत बहुत आभार ……………………………..मनी जी !!
अति सुन्दर अभिषेक जी
आपका बहुत बहुत आभार ……………………………..अकिंत जी !!
माँ के आगे सवाल ही क्या हर चीज़ छोटी होती है …………………… बहुत ही बढ़िया अभिषेक !!
तारीफ के लिए तहे दिल से शुक्रिया …………………………. सर्वजीत जी
अभिषेक जी आपकी रचना के भाव काबिलेतारीफ है, थोडा पारिस्कृत करके गहराई लायी जा सकती है….
वैसे रचना बहुत बेहतरीन है…..!
तारीफ के लिए तहे दिल से शुक्रिया …………………………. सुरेन्द्र जी !!
Very very nice…sir..????
आपका बहुत बहुत आभार …………………. स्वाति जी !!
Bahut hi sundar….kamaal….
तारीफ के लिए तहे दिल से शुक्रिया …………………………. शर्मा जी !!
अभिषेक बाद के तीन बंधों में परिष्करण की आवश्यकता है. पर भाव सुन्दर हैं.
तहे दिल से शुक्रिया ……………………मधुकर जी
बहुत ही बढ़िया ……………
तहे दिल से शुक्रिया…………… आदित्य जी