मैने तुझे पीठ पर बिठाया था कभी बचपन मे
आज तेरी डोली सजा रहा हूँ अपने आँगन मे
मन रो रहा है मेरा पर होठों पर मुस्कुराहट है
मेरी लाडो तेरी जुदाई की अजीब छटपटाहट है
माँ की ममता बिझड़ रही है, बिछड रहा है भाई
दिल मे करुण क्रन्दन है तो द्वार पर है शहनाई
मेरे नीले गगन गर्भ की तू है एक चाद सितारा
ओझल हो रही नैनो से अब, बह रही अश्रुधारा
मन की मानो तो कहता है बस यही रुक जाओ
तोड़ दो जग के बन्धन, अब तूम न दूर जाओ
पर विवश हूँ आज मै मन के उद्गार किससे कहूँ
दुनिया का विधि विधान है, इससे कैसे बच के रहूँ
मै बाप जो ठहरा, खुल कर रो भी नही सकता
उपवन का माली अपना दर्द भला किससे कहता
बिटिया तेरे सपनो मे जो आता था राजकुमार
वही आया है तुझे ले जाने हो अश्व पर सवार
हमारी दुआँ है वह तुझको असीम प्यार करे
बूझे अन्तर्मन को न तुमसे कभी तकरार करे
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सुरेन्द्र नाथ सिंंह “कुशक्षत्रप”
bahut khubsoorat rachna……
अंकिता अंशु जी प्रतिकिया से उत्साह वर्धन के लिये आभार…………।
बहुत खूब सुरेन्द्र ……बेटी कि विदाई के समय एक पिता के ह्रदय मे उठते जज्बातो से भावुक होना स्वाभिवक है ….उस कि मनोदशा को खुबसुरत शब्द दिये है आपने……प्रेम भाव से कहना चाहूगांँ कि रचना के भावो को देखते हुए प्रथम पंक्ति मे ‘ढोना’ शब्द अटपटा सा लग रहा है कोई पर्याय प्रयोग करे तो ज्यादा खुबसुरत लगेगा……!!
इस पर मेरी पुरानी रचना ‘शादी का पंचनामा’ नजर करे !!
अभी पढ़ता हू सर
कोटि कोटि धन्यवाद निवातिया जी
Kya marmik drishaya hai judaayee ka beti ki…bahut hi pyari…manmohak….betion ki tarah dulari hai Yeh aapki bahut hi khoobsoorat rachna….
सी एम् शर्मा जी रचना पर प्यार देने के लिए कोटि कोटि आभार! मित्र बहुत दिन बाद कुछ लिखने बैठा तो यही उद्गार निकलना, फिर भी आप ने सराहा तो मन को साहस मिला…
Ati sunder. Manmohak shabd rachna.
दवे जी आपका आभार, समय निकाल कर रचना पढने और अपनी प्रतिक्रिया देने हेतु!
बेहतरीन,,,,,,,,,,,,,,,,,,सुरेन्द्र जी
मनिंदर जी शुक्रिया…..!
बेहतरीन रचना सुरेंद्र. बहुत खूब.
शिशिर सर आप अपना आशीर्वाद और स्नेह देते रहे बस कलम चलती रहेगी…!
लाजवाब रचना सुरेंद्र जी
अभिषेक जी तारीफ के लिए शुक्रिया
बहुत खूब सुरेंद्र जी……
अंकित तिवारी जी अति आभार आपको मित्र…..!
पिता के ज़ज्बात और प्यार को बहुत ही गहराई से दर्शाया है आपने ……………………….. लाजवाब सुरेन्द्र जी !!
बस एक कोशिश की है सर जी, आपके उत्साहवर्धन के लिए करबद्ध आभार….!
सर…बहुत खूब… एक पिता के दिल के जज्बातों को आपने बखूबी दिखाया है।
स्वाति mam, अपने व्यस्त समय से कुछ वक्त निकाल कर रचना अवलोकन करने और प्रतिक्रिया देने हेतु आभारी हूँ…..!