समुन्द्र के किनारे खड़े, निहारने से नहीं कुछ….
समुन्द्र की लहरों से टकराने का मज़ा कुछ और हैं
किसी का साहारा लेने में वो नहीं
जो किसी का साहारा बनने में हैं
प्यार में याद करने से कुछ नहीं
किसी के दिल में याद बन कर धंडकने में हैं
किसी के एहसासों से तड़पने में कुछ नहीं
किसी को अपने एहसासों से तड़पाने में है
किसी से बिछड़ने ,में वो नहीं….
जो किसी बिछड़े से मिलने में हैं
किसी के प्यार में जलने से कुछ नहीं……….
अपने प्यार से उसको जलाने का मज़ा कुछ और हैं
:[email protected]अभिषेक शर्मा
wah abhishek ji apki rachnao ko padne ka maja kuch aur hi hai …………….bahut khub
जिस तरह आपने विपरीत भावों को अपने अन्दाज मे मजा लेने का औचित्य दिया है, कुछ सोचने को बाध्य कर देती है…
अभिषेक जी शायद रचना की यही खूबी भी है कि पाठक मुड़ कर दुबारा पढ़े…………. लाजबाब।
Kamaal hai ji Maja baar baar rachna Padhna ke baad bhi maange or hai…..behtareen….
अति सुंदर अभिषेक……………..
आनंद लेने का वास्तविक आनंद तभी है जब सकारात्मक भाव से परिपूर्ण हो….जिसको आपने बखूबी निभाया है ………बहुत अच्छे अभिषेक ।।
बहुत खूब अभिषेक जी……
बेहतरीन …………………………….. अभिषेक !!