Homeअज्ञात कविकुछ पल कुछ पल saurabh pandey अज्ञात कवि 30/06/2016 8 Comments उनकी आँखें जब हमसे जुदा होने लगीं, घड़ियाँ कुछ पल के लिये रुक गयीं और सिसक कर रोने लगीं, मैंने बाहें भी फैलायीं उन्हें कुछ पल और रोकने के लिये, पर उन्होंने कहा कि मुझे तेरी आँखों में कुछ पल और देखने दे………!! Tweet Pin It Related Posts जरूरत हाइकु – बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा बिन्दु ईमानदारी About The Author saurabh pandey 8 Comments Shishir "Madhukar" 01/07/2016 प्रेम का पवित्र सोपान इस रचना में नज़र आता है. बहुत खूब. Reply babucm 01/07/2016 बहुत खूबसूरत……वाह….. Reply pandey sauabh 01/07/2016 धन्यवाद श्रीमान महोदय……….!! Reply Amar Chandratrai 01/07/2016 Bahut khub……… Reply pandey sauabh 01/07/2016 धन्यवाद श्रीमान महोदय……….!! Reply निवातियाँ डी. के. 01/07/2016 निश्छल प्रेम की अनुभूति का सटीक उदहारण ….अति सुंदर !! Reply pandey sauabh 01/07/2016 धन्यवाद श्रीमान महोदय……….!! Reply mani 01/07/2016 अति सुंदर………………. Reply Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.
प्रेम का पवित्र सोपान इस रचना में नज़र आता है. बहुत खूब.
बहुत खूबसूरत……वाह…..
धन्यवाद श्रीमान महोदय……….!!
Bahut khub………
धन्यवाद श्रीमान महोदय……….!!
निश्छल प्रेम की अनुभूति का सटीक उदहारण ….अति सुंदर !!
धन्यवाद श्रीमान महोदय……….!!
अति सुंदर……………….