बीच में हमारा बंगला हो, चारों ओर हो फूलों की क्यारी,
फूल सुगन्धित, फल मीठे हों, दिखे हरे घास की हरियाली,
गाय, भैंस, हाथी, घोड़े हों, हम करें रथ की सवारी,
पंछियों की चह-चहाहट हो, गूंजे बच्चों की किलकारी,
पटाखे-फुलझड़ियां छूटें, छूटे रंगों की पिचकारी,
बुलेरो, पजेरो, स्कार्पियो हो, और हो दो-चार सफारी,
बड़े-बड़े लोग मिलने आयें, हमें दुनियां की खबर हो सारी,
शरद, बसंत और ग्रीष्म आये, आ जाये बर्षा ऋतु प्यारी,
दूर-दूर तक कारोबार फैला हो, इशारे पर चले दुनिया सारी,
मैं घर से जब भी निकलूं , मिल जाये एक झलक तुम्हारी,
पल-पल, हर-पल तुम्हीं को देखूं, हों नयनों की टकरारी,
मिलना-जुलना बढ़ता जाये, हम बन जायें प्रेम-पुजारी………….!!
Waah…..kuchh ni chhoda aapne…..
आखिर कुछ तो बड़ा सोंचे…………
Bahut hi sunder rachna….
Dhanybad……….!!
ये कैसे प्रेम पुजारी ………….भौतिक सुख की जिसको बीमारी !!
आखिर कुछ तो बड़ा सोंचे…………