आँगन और ओसारी में, कलरव करते कूं-कूं करते,
पंछी पंख पसारे प्यारे, कितने सुंदर पुष्प हैं लगते,
कभी फिर जब हवा बहती, फूलों की खुशबू से आँगन,
पात-पात पीपल का फिर, डोल-डोल कर ध्वनि हैं करता,
दोपहरी की तपती गर्मी में, आँगन लगता कितना सूना,
बिन पंछी, मनुष्य बिना, रहता आँगन का हर कोना,
सूरज के क्षितिज पर जाते ही, शीतल पवन फिर बहने लगती,
सासू माँ घर से निकलती और बहु से कहने लगती,
चूल्हा-चौका कर ले बेटी, बहुत पड़ा है काम अभी,
वे लोग भी आते होंगे थके-हारे होंगे सभी,
बच्चे खेल रहे हैं सब, आँगन में है चहल-पहल,
रोयेंगे भूख-भूख करके, सबकी होंगी आँखे सजल,
ला तो जरा सब्जी काट दूँ, कर दूँ तेरी थोड़ी मदद,
देख तेरे बाबूजी आ गये, ला जरा पानी या शरबत,
गर्मी में आँगन में सबके शाम को लगता प्रतिदिन मेला,
द्वार पर बैठते बड़े-बूढ़े, आँगन में सास बहु का खेला,
बहुत जरुरी होता है, आँगन का घर में होना,
बिन आँगन, द्वार बिना, कैसे महके घर का हर कोना………….!!
Sundar………..
thanks to you……….!!
Very Nice………
thankyou………!!
beautiful………………………
thankyou………!!