रोशनी मे वह आती है,
अंधेरे मे खो जाती है,
कुछ कहना चाहती है ,
पर कह ना पाती है,
याद वह फिर से आई ,
मेरी परछाई- मेरी परछाई।
सत्य कि बुनियाद है रोशनी,
डर का वजूद है अंधेरा,
रोशनी मे दिखो सत्य कि तरह,
अंधेरे मे भगाओ डर को मेरी तरह,
अब समझ मे आया क्या कहती आयी,
मेरी परछाई- मेरी परछाई।
रात का सपना छोड देना अंधेरे मे,
हर पल को जीना उजाले मे,
सुबह की किरण मे,रात कि चाँदनी मे,
मिलने मुझसे फिर से आयी,
मेरी परछाई- मेरी परछाई।
रोया था जब गम मे ,
हँसा था जब हर्ष मे,
पथ कि उस रोशनी मे,
जीवन के दो-राहे मे,
डगमगाने न दिया हौसला मेरा,
बन गया वह साथी मेरा,
मेरा साथ छोड़ न पायी,
मेरी परछाई- मेरी परछाई।
गिर कर उठना मुझे सिखाया,
कुछ बनने का जज्बा जगाया,
सूरज कि रोशनी मे वह आये,
जलधर लगते हि खो-जाये,
कैसे मुझे जीना सिखाये,
दीनचर्या का पाठ पढ़ाये,
जीवन मे वह फिर से छाई,
मेरी परछाई- मेरी परछाई।
☺ कविता-विनय प्रजापति
बहुत सुदर प्रयास है
thanks मेरी कविता जो आपको अच्छी लगी।
Very nice express of heart feeling
thank you sir
Bahut khoobsoorat….
Nice thoughts…………
परछाई को आदर्श बना सकारात्मक विचार प्रस्तुत किया…अति सुन्दर…..
Bahut Khoob