महफिलों में मिली यूँ नज़रों से नज़र
एक सितम पे ये दिल अब तेरा हो गया
तीर नज़रों से यूँ तुने मारा मुझे
में उसी ज़ख्म से अब घायल हो गया
मुलाकातों के दौर अब बढनें लेगे़
क्या खबर रात की कब दिन हो गया
क्या इबादत करू कुछ पता ना चले
हर दुवां मेरी अब तू ही बन गयी
इश्क के रंग में प्यार चढ सा गया
काली रातें भी अब चांदनी बन गयी
@:-(अभिषेक शर्मा)
bahut khub abhishek ji…..
thanks a lot mani ji
“क्या इबादत करू कुछ पता ना चले
हर दुवां मेरी अब तू ही बन गयी”
बहुत अच्छा लिखा है अभिषेक.
हार्दिक आभार शिशिर जी ……
Bahut achha abhisekh jee.
” Mulakaton ke daur mein hum bhi kahin bhatak gaye
Na ishque mili na manjil aishe hi atak gaye “
bahut bahut abhar ap ka bindu ji
बहुत ही खूबसूरत….अभिषेक जी….कैसे लगेगा अगर यह अशआर आपके ऐसे हों तो….
क्या इबादत करू कुछ पता ना चले
हर दुवां मेरी अब तू ही बन है गया….
इश्क के रंग में प्यार और है गहरा सा गया
काली रातों पे खुमार चाँदनी का चढ़ सा गया…
बहुत-बहुत दिल से धन्यवाद बब्बू जी ha bikul or bhi achi
प्रत्येक शेर लाजबाब……….बहुत खूबसूरत !!
दिल से शुक्रिया……निवातियाँ जी
वाह
बहुत खूब सर
बहुत बहुत आभार आपका …अकिंत जी
Nice expression……………………………………
आपका दिल से शुक्रिया…… विजय जी
बहुत ही बढ़िया ………………………… अभिषेक !!
दिल से धन्यवाद ………..सर्वजीत जी !!
Bahut khoob…..very nice
बहुत बहुत धन्यवाद …स्वाति जी
अभिषेक जी आपने तो कमाल कर दिया , बहुत खूब l
दिल से धन्यवाद ……….राजीव जी !!
Bahut khubs Abhishek ji…………..
दिल से धन्यवाद ………..अमर जी !!