Homeअज्ञात कविबचपन बचपन saurabh pandey अज्ञात कवि 29/06/2016 7 Comments उदास रहता है मोहल्ले मै बारिश का पानी आजकल, सुना है कागज़ की नाव बनानेवाले बड़े हो गए है. Tweet Pin It Related Posts “इस शहर में “ इंटरनेटीय प्रेम कविता ! रोटी About The Author saurabh pandey 7 Comments Shishir "Madhukar" 29/06/2016 Well said…………. Reply pandey sauabh 29/06/2016 AJI KUCH AAP BHI LIKH DO… Reply निवातियाँ डी. के. 29/06/2016 सत्य कहा …….अपितु हकीकत तो यह है कि, *देनी थी जो सौगात आने वाली पीढ़ी को उनसे पल्ला झाड़कर हम खड़े हो गये !! “ Reply Amar Chandratrai 29/06/2016 सही बात काहा सर आपने…..आजकल अपनी खुसियो को लोग इलेक्ट्रॉनिक और सॉफ्टवेयर में तलाशते है….वो नादाँ क्या समझेंगे कागज की नाव का मजा….. Reply shrija kumari 29/06/2016 very well said….. Reply babucm 30/06/2016 वाह क्या बात है pandey sauabhji………और निवातियाँजी आप का जवाब नहीं….हा हा हा…. Reply विजय कुमार सिंह 30/06/2016 बहुत खूब……………………………………………………… Reply Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.
Well said………….
AJI KUCH AAP BHI LIKH DO…
सत्य कहा …….अपितु हकीकत तो यह है कि,
*देनी थी जो सौगात आने वाली पीढ़ी को
उनसे पल्ला झाड़कर हम खड़े हो गये !! “
सही बात काहा सर आपने…..आजकल अपनी खुसियो को लोग इलेक्ट्रॉनिक और सॉफ्टवेयर में तलाशते है….वो नादाँ क्या समझेंगे कागज की नाव का मजा…..
very well said…..
वाह क्या बात है pandey sauabhji………और निवातियाँजी आप का जवाब नहीं….हा हा हा….
बहुत खूब………………………………………………………