घनधोर घटा नभ में घुमड़े ,
उज्ज्वलता से प्रदीपन,
गर्जना करें दामिनी
सावन की प्रथम बूँद का
दरख्तों से टकराकर
गिरे प्रबल वेग से
आलिंगन की प्यासी
धरा से
चुम्बन स्वरुप स्पर्श करे ..!
गर्भ से उपजी सौंधी सौंधी
मिटटी की भीनी भीनी
ह्रदय को सपंदन कर देने वाली
सुगंध का अनुभव करने को
जी चाह्ता है……!!
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हाँ मेरा फिर से
उस गाँव की मिटटी से
लिपटकर बारिश में भीगने को
जी चाहता है ………..!!
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डी. के. निवातियाँ [email protected]
Very beautiful composition.. Sir.. सचमुच गाँव की मिटटी की खुशबु की बात ही निराली होती है।????
thank you very much for your valuable comment ……!!
बहुत सूंदर…………………..
मेरा फिर से
उस गाँव की मिटटी से
लिपटकर बारिश में भीगने को
जी चाहता है ………..!!
धन्यवाद विजय …………..।।
अति सुन्दर निवातियाँ जी ……………..
थन्यवाद अभिषेक…………!
mera bhi nivatiya ji…………….bahut khub
शुक्रिया मनी………….!
Aapki rachna se poora ka poora drishya ek film ki tarah saamne chal pada….khoobsoorati hai iss rachna ki….kiska jee nahin chaahta….behtareen khushboo maati ki…..waaahhh….
मिट्टी की खुशबू होती ही ऐसा है……….. बहुत शुक्रिया बब्बू जी ।।
गांव की याद दिल दी आपकी रचना निवातियाँ सर …
शहर ने तो उन सारी यादों पर एक व्यस्तता का पर्दा डाल दिया है
बहुत बहुत शुक्रिया अंकिता..….।।
बीते समय को पाने की तड़प का भावुक चित्रण. बहुत खूब
तहदिल से शुक्रिया आपका शिशिर जी
आपकी कविता में गाँव की मिट्टी की सुन्धी खुशबू ही मेहक है
धन्यवाद रिंकी ……………..!!
बहुत ही भावुक बना दिया आपने इस रचना से सर………. मे भी गाव से ही हूँ पर रोजी रोटी की तलाश सुदूर आसाम से ला दी है …. आपकी रचना एक तड़प पैदा करती है अतीत को पाने के लिये…………
रचना पसंद कर अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद सुरेन्द्र आपका ……!