‘तोहे मोरी कसम’
_अरुण कुमार तिवारी
ऐसे रूठो न मोरे पिया,
तोहे मोरी कसम…
हाँ..तोहे मोरी कसम…
रूठे पिया रूठे सब तारे,
बदरा भये सब रंग ते कारे|
उमड़ घुमड़ घिर नैना छाये,
कजरा धुल मिल बह-बह जाए|
ऐसे तोड़ो न मोरा जिया,
देखो बरसे नयन|
ऐसे रूठो न मोरे पिया,
तोहे मोरी कसम|
हाँ..तोहे मोरी कसम..
नील गगन की बूँदें जो निखरें,
खुशियों की मोती बन बिखरें|
सूरज से चन्दा जब रूठे,
अरमानों की रैना लूटे|
छन-छन दहे ये हिया,
लागी ऐसी अगन|
ऐसे रूठो न मोरे पिया,
तोहे मोरी कसम|
हाँ..तोहे मोरी कसम..
तक तक जगतीं सोचें रतियाँ,
काहे कही तोसे नीम सी बतियाँ|
रीते रीते जले मन कादल,
टूटे सपन भीगा अब आँचल|
अब सोचे बे-सोच किया,
रोये गीला ये मन|
ऐसे रूठो न मोरे पिया,
तोहे मोरी कसम|
हाँ..तोहे मोरी कसम..
तोहे….मोरी….कसम…..
-‘अरुण’
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बेहतरीन प्रणय गीत अरुण …………….यदि इसे कोई शारदा सिन्हा गा दें तो आनंद आ जाए. प्रयास करना चाहिए
धन्यवाद सर!
ऐसा शायद अभी तो सम्भव नहीं।
हाँ भविष्य में जरूर सोचा जा सकता है।
वाद्ययंत्रो के संग गुनगुनाने लायक खूबसूरत कर्णप्रिय मधुर गीत …….बहुत अच्छे अरुण !!
धन्यवाद सर!
आपके एक एक शब्द ऊर्जा देते हैं|
बहुत खूबसूरत तिवारी जी
धन्यवाद आनन्द जी…..
बहुत खूब अरुण जी बहुत ही बढ़िया
मनी जी को धन्यवाद…
वआह….कुदरती शहद की तरह मधुर…..
मिठास का आस्वादन रसिक ही तो कर सकते हैं।
रचना स्वीकारने के लिए धन्यवाद!
बहुत ही शानदार कृति है ….आपने एक एक मोटी जैसे शब्दों को जोड़ के जो कविता रूपी माला तैयार की है न उसका जवाब नहीं …हर एक शब्द लाजवाब है…………
माफ़ कीजियेगा सर मोटी नहीं मोती …………..
अरे मित्र माफ़ी की कोई बात नहींनहीं
ये तो सहज सी त्रुटि है। जिसे सभी समझ सकते हैं। वैसे भी भावों के आगे शब्दों का क्या मोल?
आप को पुनः धन्यवाद!
धन्यवाद!
उत्साहवर्धन से लेखनी को बल मिलता है। और नवीन भावों का प्रस्फुटन और आकर्षक हो उठता है।
आप का बहुत बहुत आभार….
बेहतरीन गीत, अति सुन्दर……………………..
उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद सर…
बहुत ही बढ़िया ………………………… लाजवाब अरुण जी !!
धन्यवाद सर्वजीत जी!
अरूण जी, आप गीत भी इतना अच्छा लिखते है, मै तो सलाम करता हूँ आपको……………. बहुत बेहतरीन………….लाजबाब…।
हौसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद सर!
इन र रचनाओं के पीछे कहीं न कहीं आप का मार्गदर्शन और स्नेह छिपा है जिसकी अभिलाषा आजीवन रहेगी।
पुनश्च आभार!!