जब ऱूख से हटा रही थी वो नकाब धीरे धीरे,
बादलों से जैसे निकल रहा था आफताब धीरे धीरे,
जान ले रही थी ” अमर ” उनकी वो शोख अदाएँ ,
दिल से बस इतना ही निकला,
जान लिजिए मगर हुज़ूर धीरे धीरे जनाब धीरे धीरे ।
Amar Chandratrai Pandey,Quality Engineer in SPEC,From Buxar(Bihar)...Love to write story,Song,Poem,Sayri,Gajal in hindi...want to became a good writer...
Superb lines………………
बहुत खूबसूरत…….
Thank you both of you…………….
अति सुन्दर तुलना…………
अति सुन्दर…………………………………………
बहुत ही बढ़िया ………………………… खूबसूरत अमर जी !! !!