सर, जैसे प्रेमिका के सज धज कर घर से निकलने पर उसका अनजान प्रेमी उसका दरवाजे-खिड़कियों की आड़ लिए छुप-छुप कर दीदार करता है.. बस उसी पल को सूरज के बार बार बादलों में छुप जाने और फिर बाहर निकल आने से प्रस्तुत किया है..और प्रेमी प्रेमिका से यही कह रहा है कि शायद तुम आज फिर वैसे ही घर से निकली हो, जो सूरज भी तुम्हे छुप छुप देख रहा है.
सोनित, जो आप कहना चाहते वो स्पष्ट नहीं हो रहा है !!
सर, जैसे प्रेमिका के सज धज कर घर से निकलने पर उसका अनजान प्रेमी उसका दरवाजे-खिड़कियों की आड़ लिए छुप-छुप कर दीदार करता है.. बस उसी पल को सूरज के बार बार बादलों में छुप जाने और फिर बाहर निकल आने से प्रस्तुत किया है..और प्रेमी प्रेमिका से यही कह रहा है कि शायद तुम आज फिर वैसे ही घर से निकली हो, जो सूरज भी तुम्हे छुप छुप देख रहा है.
प्रियतम की फ़िक्र
और तारीफ़ की एक अलग विधा…
धुप में निकला न करो…..
याद है न सर! (निवातियां जी)
अच्छा है सोनित जी!
बहुत वहुत शुक्रिया अरुण जी.
Nice write………..
धन्यवाद शिशिर जी
सन्दुर……………….
आभार अभिषेक जी.
Nice write……………………
धन्यवाद सर.
Nice………………
धन्यवाद अमर जी.