रस्म रिवाज अब हुआ सब पूरा आया वक्त विदाई का,
छोड़ जाने का समय हो गया बाबुल की अंगनायि का,
आंखों में आंसू लिए बेटी कर रही सवाल,
कौन सी गलती कर दी मैंने जो पापा रहे हो मुझे घर से निकाल,
आप तो कहते थे हरदम हूं मैं आपके बगिया का फूल,
फिर क्यों अपने बगिया के फूल को दूर कर रहे हो क्या हो गई कोई इस फूल से भूल,
मां तो कहती थी हरदम तू रौनक है मेरे आंगन की,
फिर क्यों हटा लिया मां तूने छांव अपने मधुर आंचल की,
भैया तुम तो कहते थे हरदम मैं तुमको बहुत दुलारी हूं,
तो तुम क्यों मुझे खुद से दूर कर रहे हो क्या मैं अब तुम्हारे लिए थोड़ी सी भी ना प्यारी हूं,
कोई तो मुझे रोक लो नहीं जाना है मुझे तुमसे दूर,
क्यों पत्थर दिल हो रहे हो सब क्यों हो रहे हो इतना मजबूर,
सच कहती हूं मम्मी पापा भैया मुझे याद बहुत तुम आओगे,
मालूम है मुझे तुम याद करोगे पर पास मुझे ना पाओगे,
बहाना तेरी याद मुझे सबसे ज्यादा तड़पाएगी,
रो उठेगी निगाहें जब पास तुझे ना पाएगी,
अब किस से मैं अपना हाल-ए-दिल सुनाऊंगी,
अब किसके सामने पापा मैं नखरे अपने दिखाऊंगी,
अब कौन मेरी गलतियों को भी झूठलाएगा,
अब कौन पापा मुझे लाडली बिटिया कहकर बुलाएगा,
मां तुम तो बताओ कौन मेरा सर गोद में रखकर प्यार से सह लाएगा,
कौन मुझे मेरी गलतियों पर आकर प्यार से मुझे समझाएगा,
इतना सुन के मां पापा भाई बहन सब गले लग कर रोने लगे,
धीरे धीरे यूं ही विदाई के वक्त भी होने लगे,
रोते-रोते सबने बिटिया को डोली में बिठा कर दिया विदा,
बना बनाया यह रिश्ता एक नए रिश्ते के लिए हो गया जुदा…
Very Nice………………………….. Pandey jee.
Thanks sarvajit ji
सुंदर रचना…………………..एक बार “मुझे मत मरो (बेटी)” पढ़ें.
धन्यवाद सर ।अभी पढता हूँ ।
Bahut bhaavpurn rachna ….duniya me jo dastoor bane hai prasangik roop se wo sakaaratmk bhaav se banaaye gye the wqt ke chalte apna swaroop kho rahe hai !!
जी बिल्कुल सही कहा आपने….आपकी पारखी नजर कमाल की है…
भाई…भावों को बहुत अच्छा भरा है आपने….हाँ रीत जो है सो है…पर मन भी मन ही है ना….खूबसूरत……
धन्यवाद Babucm जी । आजकल के कुछ लोग तो रिती रिवाजों को बिल्कुल मानते ही नहीं और उसी का नतीजा है कि हमारा देश गर्त मे जा रहा है…..