दर्द बढ़ कर के दवा हो गया…
जब से तू हमसे खफा हो गया…
तेरी यादों ने भी साथ हमारा छोड़ दिया….
तन्हाई का सफर भी तन्हा हो गया….
किस कदर हुस्न बेपर्दा हो गया…
रूबरू इश्क़ के होश हवा हो गया…
इलज़ाम-ऐ-बेवफाई हम पर जवां हो गया…
तुमने नज़रें फेरी…मैं अपना दुश्मन हो गया…
खुशगवार मौसम अब हर तरफ हो गया…
तुम्हारे देखते ही बीमार अच्छा हो गया…
जा रहा था रकीब बुदबुदाता सा कल शाम…
देखते ही मुझको वो और ग़मज़दा हो गया….
हवाएं तो तेज़ चली हैं अब की बार “बब्बू”…
पैरहन वजूद सब तार तार हो गया…
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/सी.एम. शर्मा (बब्बू)
पैरहन = लबादा/कपडे
वजूद = पहचान (existence)
बहुत खूब लिखते हैं आप भी. वाह………..
दर्द बढ़ कर के दवा हो गया…
जब से तू हमसे खफा हो गया…
सर आप को पसंद आयी….आभार आप का….
बहुत बढ़िया बब्बू जी के क्या कहने………बहुत खूबसूरत
आप के भी क्या कहने….हा हा हा…..बहुत बहुत शुक्रिया…अभिषेकजी…..
बहुत बढ़िया सी एम शर्मा जी ………………..
शुक्रिया आप का बहुत बहुत….
“जा रहा था रकीब बुदबुदाता सा कल शाम…
देखते ही मुझको वो और ग़मज़दा हो गया….”
बहुत अच्छा लगा बब्बू जी. पूरी रचना अति उत्तम है
जी…सही पकड़ें हैं आप…मेरे कुछ आशार ऐसे हैं जो बहुत प्रिय हैं…यह उनमें से एक है…..बहुत पहले कभी लिखा था….बहुत बहुत आभार आपका……
अच्छी रचना….
एक नए भाव के साथ
वाह!!
बहुत बहुत आभार आप का……
अति उत्तम ………………
बहुत बहुत आभार पसंद करने के लिए….
क्या दर्द क्या दवा.., क्या खुशगवार मौसम ………सब हवा हो गया. ………कमाल कर दिया आपने ……………किस शेर की अच्छा कहुँ सब एक सफर पर है मगर मंजिल से ब्यान अलग अलग !! बहुत अच्छे बब्बू जी !!
आप को शेर अच्छे लगे….बहुत बहुत आभार….आपकी दिल की मंज़िल का ध्यान रखेंगे…..हा हा हा….
लाजवाब ……………………….. बहुत ही बढ़िया शर्मा जी !!
जब दर्द हद से बढ़ जाता है तो दवा का काम ही करता है !!
लाजवाब के मुंह से लाजवाब……वाह…..तहदिल से आभार आपका…..
बहुत ही खूबसूरत रचना। सर! .
पसंद करने के लिए….अनेकों अनेकों धन्यवाद….आभार…..