स्मृतियों के मेघ बरसते भीग रहा है अन्तर्मनदूर गाँव की पगडंडी पर चहक रहा मेरा बचपनढल रही दुपहरी गौशाला से कजरी गईया रही पुकारबाबा संग छोटे चरवाहों की टोली देखो है तैयारबंधन मुक्त किन्तु अनुशासित चले झूमते जीव सभीज्यों उल्लास की आभा मे हुए सभी सजीव अभीद्वेष नहीं है क्लेश नही है कहीं किसी के होने सेजात पात और भेद भाव के दैत्य लगे हैं बौने सेखेल शुरू है आज तो काका लगता है कि हारेंगेबच्चों ने हुंकार भरी है शायद बाजी मारेंगेवो तालाब के ऊपर जो पतली आम की डाली हैमै उस पर उल्टा झूल रहा हर फिक्र से तबीयत खाली हैकच्चे आमों से लदा हुआ यह वृक्ष न जाने किसका हैजो पत्थर मार गिरा देगा सच पूछो तो उसका है ।दूर किसी कुटिया से देखो बूढ़ी काकी चिल्लाती हैभागो सारे बच्चों वह डंडा लेकर आती है ।अद्भुत है यह दृश्य मनोहर भूले नहीं बिसरता हैमन बचपन की स्मृतियों मे खिलता और महकता है
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Ati sunder sir……….
बचपन का सजीव चित्रण देवेन्द्र जी
मजा आ गया सर………
Good work devendra like ever before.
अदभुद देवेंद्र जी
अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए सभी का अभार।