उम्र भर अपनों के आँसू पोंछते रह गए हम
खुद आँसू बहाने का वक़्त भी नसीब हुआ नही।
औरों को रोता देखकर रोने की कोशिश बहुत की
फिर उनको हंसाने का ख़याल मन मे आ गया ।
अपने काफिले मे इतने कांटे सजा लिए मैंने
कोई अब साथ चलने को तैयार नहीं होता।
दिल के हाथों मजबूर हूँ,किस्मत नही बदल सकता
चाहे कितने ही सितारे मेरी मुट्ठी मे आ जाए।
सबक सीखा है तूफानों के रुख बदलने का
पर खुद को बिखरने से बचा नहीं पाता हूँ मै।
मौत से सामना तो हर रोज होता है मेरा
मगर जिंदगी से नजरें चुरा नही पाता हूँ मैं।
…देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”
ह्रदय में दबी भावनाओ को शब्द देने का खूबसूरत प्रयास …….हौसला टूटने न दीजिएगा ……जीत उसी की होती है जो दता रहता है ….हार उसी की होती है जो स्वंय हार स्वीकार कर लेता है !!
अत्यन्त खूबसूरत मनोभाव जिन्हे कोई नहीं समझता ……..
बहुत खूबसूरत…..