“तू कैसे सब सह जाती है?”
_अरुण कुमार तिवारी
तू कैसे सब सह जाती है?
बतला दे माँ!
बढ़ चले पीर जब चोटी तक,
हिलते गलते हिम अश्रु शिखर|
तू लिए वेदना तकती है,
पथराई आँखों ठहर सिहर|
जज्बात कराहें उठी लहर,
तू मूरत बन रह जाती है|
तू कैसे सब सह जाती है?
बतला दे माँ!
तेरा अपना ही लहू करे,
अस्मत को तेरी तार तार|
ले छद्म कटारी क्रूर हस्त,
करता वो द्रोही कुटिल वार|
चीत्कार भले करती दुनियाँ,
तू सुलग मौन दह जाती है|
तू कैसे सब सह जाती है?
बतला दे माँ!
जब अर्थ चक्र के क्रूर दन्त,
तेरा तन खाते नोच नोच!
पिसती पाटों के बीच फसी,
तेरी दुविधा को सोच सोच|
बन सजे कँगूरा भले चन्द्र,
तू बनी नींव ढह जाती है|
तू कैसे सब सह जाती है?
बतला दे माँ!
जब तेरा निज का जनित रुधिर,
अब्दुल हमीद बन मिटता है|
वो लौट अमर बन सीमा से,
खण्डित शव जैसा दिखता है|
तब रक्त रंज उसके टुकड़े,
तू देख-देख मुशकाती है!
इस लाज तिरंगे की रखने,
सौ कोख तू वारी जाती है|
तेरी अथाह सागर पीड़ा,
ममता बन के बह जाती है|
तू कैसे सब सह जाती है?
बतला दे माँ!
बतला दे माँ!
-‘अरुण’
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बेहतरीन देश प्रेम से ओतप्रोत गम्भीरता समेटे खूबसूरत रचना. पुनः कहूंगा आपकी रचनाए अकादमिक स्तर की होती हैं. ऐसी रचनाओं को आरएसएस मुखपत्र पांचजन्य में भेजिए जहाँ उन्हें उचित सम्मान मिलेगा
बहुत बहुत धन्यवाद सर
मैं प्रयास करूँगा!
बहुत खूबसूरत रचना……..बेहतरीन , अरुण जी !
धन्यवाद अभिषेक जी
देशभक्ति पूर्ण भावनाओं से सजी सुन्दर रचना !
कविता के माध्यम से प्रेषित भाव ग्रहण करने के लिए कोटिशः आभार!!
आपने बहुत अच्छे शब्दों का प्रयोग किया है और उतने ही अच्छे भाव को इस कविता के माध्यम से प्रस्तुत भी किया है अतिउत्तम रचना .
रचना पसन्द करने के लिए धन्यवाद!
माँ की सहनशीलता की अनुपम व्याख्या की है आपने. अतिउत्तम रचना .
कोटिशः आभार…….
बहुत सुन्दर रचना है
धन्यवाद सर …,…
धन्यवाद मैम!
गलती के लिए क्षमा करें!
gajab arun ji ………………..
धन्यवाद मनी जी…….
सुंदर कविता और कवि दोनों को सादर प्रणाम ।
आपके इन सुंदर विचारों को सादर नमन!
आप मेरे अग्रज हैं। आप सब के चरणरज से प्रेरित होकर ही माँ सरस्वती की सेवा करता हूँ। आशीष दें।
तू लिए वेदना तकती है,
अरुण जी इस पंक्ति में तकती है शब्द की जगह कोई और ओजपूर्ण शब्द चयन करे तो रचना की सारगर्भिता में और निखार आये….
पूरी रचना में आपकी गहन सृजनशीलता उभरी है जिसके लिए मै आपके मेहनत और लेखन की निरंतर लालसा को नमन करता हूँ….!
आप ऐसे ही लिखते रहे…….!
धन्यवाद सर
मैं निश्चय ही विचार करूँगा।
You have written well to describe The Mother’s great heart in The world.
Oh!
Thanks a lot sir.
बेहतरीन शब्दों से सजी बेहतरीन रचना ……………………………………… बहुत ही बढ़िया अरुण जी !!
सर्वजीत जी को नमन!
आप के ये प्रेरणा शब्द मुझसे निश्चय ही अच्छा लिख्वायेंगे। मैं और अच्छी कोशिश करूँगा।
सुन्दर कवित….
धन्यवाद चन्द्रमोहन जी।
वआह……बहुत ही ओजपूर्ण….माँ का त्याग…व्यथा…ममता….देश भक्ति से लबालब उसपे आपके शब्द की अदाकारी….नमन आप की रचना को…आपको….
हृदय की असीम गहराइयों से आपको नमन !
उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद!
आप सब ने मुझे निश्चय ही नई ऊर्जा दी है। मेरा लेखनी निष्चय ही आप सब के प्रति कृतज्ञ रहेगी।