क़ातिल
गरूर, नखरे, नज़ाकत और अदा
ऐसे नश्तर हैं हुस्न के ……………………….
जो क़त्ल कर देते हैं आशिक़-ए-दिलों का
और क़ातिल भी नहीं कहलाते ………………….
शायर : सर्वजीत सिंह
[email protected]
क़ातिल
गरूर, नखरे, नज़ाकत और अदा
ऐसे नश्तर हैं हुस्न के ……………………….
जो क़त्ल कर देते हैं आशिक़-ए-दिलों का
और क़ातिल भी नहीं कहलाते ………………….
शायर : सर्वजीत सिंह
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Lovely truth well expressed……..
Thank you very much for the appreciation …………………….. Madhukar Jee.
Well said ……..lovely Sarvjeet ji
Thank you very much for the appreciation …………………….. Nivatiyan Jee.
बेहतरीन
मैं खूबसूरत अंदाजों से डरता नहीं
खौफ खा जाता हूँ बस खंजरों से…….
आपका बहुत बहुत आभार अरुण जी ……………………… आपने बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ लिखी हैं !!
हा हा हा…..जब खुद ही क़त्ल होने को तयार हो कोई तो कातिल क्यूँ भला कहें…..जनाब आप इसी कमाल से क़त्ल करते रहो….
शर्मा जी आपका अंदाज़-ए-बयां कमाल का है ………………………… बहुत बहुत आभार आपका !!
बेहतरीन……सर्वजीत जी !!
बहुत बहुत धन्यवाद ……………. अभिषेक !!
लगता है आप भी काफी करीब से जख्म पाए है……………बहुत बढ़िया सर्वजीत जी
ये सब ज़ख्मों का हिसाब है मनी………………………. बहुत बहुत धन्यवाद !!