जन्म पर मेरे क्यों दीप नहीं जलाती मां
हर बच्चे के मां जैसे तू मुझे क्यों नहीं अपनाती मां
पशु भी अपना हर बच्चा अपनाता है मां
तो तू क्यों मुझे अंजान गली छोड़ जाती है मां
हर बच्चे के दुःख में रोती है उसकी मां
जब दर्द हो उसे तो उसकी दवा होती है मां
तू क्यों मुझे दुःख में छोड़ जाती है मां
क्यों इस दुनिया से इतना दर्द दिलाती है मां
कर यकीन मैं भी तेरी ही जीस्म का टुकड़ा हूँ
देख ध्यान से पिता सा लिए मैं भी मुखड़ा हूँ
मेरे किसी अपने की जुबा पर मेरी बात नहीं होती
एक तेरे छोड़ देने से दुनिया में कोई औकात नहीं होती
दूसरों के लिए हँसाना दूसरों के लिए गाना
दूसरों की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी मनाना
न कोई घर मेरा न कोई अपना मेरा
न कोई धर्म मेरा न कोई सपना मेरा
न डर इस बात का की अपने रुठ जाएंगे
न डर इस बात का की मेरे सपने टूट जाएंगे
न पुरुष सा कठोर न नारी सी कोमलता
न मेरी जायज लगती किसी को कामुकता
अपाहिज कमजोरी से तो नारी सुरक्षा को परेशान
लावारिश अपनों की खोज में तो पुरुष दक्षता को परेशान
मेरे पास ऐसी सारी परेशानी है
मेरी ज़िंदगी बस दर्द की कहानी है
मैं दूसरों की ख़ुशी में गाउँ तो बदनाम
क्या मैं इस लायक नहीं की कर पाऊं कोई काम
बुरे वक्त की खासियत की वो भी गुजर जाता है
पर नसीब मेरा की वक्त मुझसे जुड़ते ही बुरा हो जाता है
आज एक गुजारिश है मुझे मेरी पहचान दे दो
मानवता के नाम ही सही मुझे भी मानव नाम दे दो
बहुत ही सुन्दर ……………….
जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद …..
bahut khub gayatri ji …………….
जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद …..
आपकी कविता का विषय अत्यन्त मार्मिक है. समाज के द्वारा मनुष्य के ही एक रूप की उपेक्षा कटाई उचित नहीं है. बहुत खूबसूरत रचना. एक बार “धित्कार…” भी पढ़ें.
जी अगर इस सोच को सभी समझेंगे तो पूरा तो नहीं किन्तु कुछ दर्द उनका हम बाट सकते है
जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद …..
बेहतरीन रचना ………………..
जी आपका धन्यवाद .
अति सुन्दर…… …
जी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद आपका …..
उचित मुद्दे पर तर्कसंगत विचारों के माध्यम से समाज की खोखली स्वार्थ परक मान्यताओं को बड़े अत्यन्त मार्मिक रूप से प्रस्तुत कर इस विषय को गम्भीरता से लेने को बल दिया है आपने …..बहुत खूबसूरत !!
जी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद आपका …..
हर सबल व्यक्ति की यह जिम्मेदारी है जो निर्बल है उनकी ओर भी अपनी जिम्मेदारी समझे और उन्हें भी सुन्दर जीवन जीने का मौका दे |
बहुत ही खूबसूरती से आपने ये विषय उठाया है…. बिना किसी भेदभाव के हमें इंसान की तरह उनसे व्यव्हार करना चाहिए…..
जी उम्मीद है की हम लोग कुछ और न सही किन्तु भावनात्मक रूप से उनके साथ होंगे .
आपका धन्यवाद प्रतिकिया के लिए
एक संवेदनशील विषय पर इतनी सहजता से कोई अति संवेदनशील व्यक्ति ही लिख सकता है। आपके इस गुण को नमन!
ईश्वर और प्रकृति की उस् संरचना को कदापि अतिरिक्त या हेय नहीं माना जा सकता। अभी मानव सभ्यता को इस ऊँचाई पर पहुचने में समय लगेगा।
रचना के माध्यम से जगाने की सकारात्मकता हेतु कोटिशः आभार।
बधाई स्वीकार करें!
ह्रदय से आपका धन्यवाद ………
गायत्री जी जिस भावुकता और तर्क से आपने अपनी बात राखी है उसके लिए मेरा साधुवाद! वाकई में समाज के दोहरे चरित्र का यह परिणाम है!
अर्थपूर्ण एवं संजीदा विचार हैं आपके । संवेदनशील विषय पर इतनी मार्मिक अभिव्यक्ति काबिले तारीफ है ।